मीडिया : ये हवा बांधने वाले

Last Updated 08 Jan 2017 04:36:40 AM IST

अभी चुनाव हों तो क्या नतीजे हो सकते हैं? कौन जीत सकता है? कौन सरकार बना सकता है? इसे बताने के लिए हम लेकर आ रहे हैं सबसे बड़ा सर्वे!


मीडिया : ये हवा बांधने वाले

ओपिनियन पोल! दो चैनलों पर दो ‘पोल’ आ चुके हैं, जो कह चुके हैं कि अगर आज चुनाव हों तो पंजाब को छोड़ बाकी के चार राज्यों में भाजपा सरकार बनाने जा रही है. पोल कंपनियों की ऐसी त्वरा और तत्परता आश्चर्य पैदा करती है!

यही चैनल तो थे जिनने पचास दिन लंबी नोटबंदी में अपनी तरफ से न एक सर्वे कराया न किया. जो एक सर्वे हुआ बताया गया वह माबदौलत कराया रहा और उसके आकंड़े ऐसे फिनिश्ड और टेलरमेड प्रतीत होते थे कि उन पर किसी ने विवाद तक नहीं उठाया! लेकिन ज्यों ही चुनाव की खबर गरम होने लगी दो चैनलों ने दो सर्वे आनन-फानन में दे डाले कि यूपी में बीजेपी को ज्यादा सीट मिल रही हैं. नम्बर दो पर सपा और बसपा अटकी हैं और कांग्रेस नम्बर चार पर कहीं पड़ी है यानी सात आठ सीट के साथ!

‘चरचक’ (चरचाकार) हिंदी में भी रहे और ‘चरचक’ अंग्रेजी में भी रहे, जो कहते रहे कि अब तक खबरें बता चुकी हैं कि यह चुनाव नोटबंदी पर रेफरेंडम भी होगा. हिंदी चैनल का ‘सेंपिल’ (अपनी राय देने वाले लोगों की कुल संख्या) पांच हजार के लगभग का था. अंग्रेजी चैनल के पोल का सेंपिल बाइस हजार के आसपास था. यह गजब का सेंपिल रहा.

जरा देखें : पांच राज्यों की जनता की संख्या पच्चीस करोड़ से ज्यादा और इतनी बड़ी जनसंख्या का मिजाज बताने के लिए सिर्फ पांच हजार का या बाइस हजार का सेंपिल! भई वाह! और यह तो अभी शुरुआत है. न जाने कितने पोल और आने हैं. सब एक ही पुण्यकार्य करने वाले हैं कि बताते रहें कि कौन कितना आगे है. यह है हवा बांधे का धंधा. इसी का सीजन चल रहा है. हवा के धंधे से हमारी राजनीति का गहरा रिश्ता है. हमारे यहां के वोटर की मानसिकता कुछ इस तरह से काम करती है : अच्छा वोटर वही जो अपना वोट खराब न करे. अगर हारने वाले को वोट देता है तो उसका वोट बेकार ही हुआ समझिए और इसलिए जीतने वाले को ही वोट देना चाहिए ताकि आपका वोट बेजा न जाए. और हम हैं जो आपको बताते ही रहेंगे कि कौन जीतने वाला है ताकि आपको चुनने में परेशानी न हो. इसे कहते हैं हवा की राजनीति चलाना : जो वोटर कमिटेड नहीं होता इधर-उधर वाला होता है, उसके कान में कहना या कहलवाना कि हारने वाले को अपना वोट देकर बेकार न कर जीतने वाले को दे. माना कि ऐसे पोलों का एक संदेश पिछड़ने वाले दल के लिए भी होता है कि देख भाई, तू पिछड़ रहा है. अपने पिछड़ने को रोकने के उपाय कर और मुकाबले में आ जा.

लेकिन संदेश संदेश में फर्क होता है. किसी को कमजोर बता कर कहिए कि ‘तू तो गया’, तो बंदा कल की जगह आज मर जाएगा और कहिए कि तू चंगा है और ‘बेहतर हो जाएगा’ तो वह दौड़ने लगेगा.

सारा खेल मूड या मानसिकता बनाने का होता है यानी हवा बनाने का होता है. यही है हवा बनाने की राजनीति! जिसकी हवा बनाई गई उसकी बनती जाती है. जिसकी निकाली गई उसकी निकलती जाती है, और खेल हो जाता है. और जिस तरह का कोनी मीडिया अपने यहां है, उसमें यह सब होना असंभव नहीं है, वरना क्या बात थी कि नोटबंदी जैसे मुददे पर किसी भी मीडिया हाउस ने अपना एक भी स्वतंत्र सर्वे तक न कराया. कुछ और ‘इंडिपेंडेट’सर्वे भी आ गए होते तो ‘जनता साथ है’ वाली बात और भी पक्की हो जाती. उसे पक्की करने में क्यों हिचकते रहे चैनल?

ये पोल, ये सर्वे हमारे यहां एक सुरक्षित खेल की तरह हैं, जिनके जरिए यथार्थ बताने की जगह यथार्थ को हांकने का खेल होता है. इसीलिए अक्सर अपने यहां दिखने पोल परिणामों से कभी-कभी इतने दूर पड़ जाते हैं कि लोग उनको शक की निगाह से देखते हैं!

अमेरिका के चुनावों में तो पोल कंपनियां,  कॉरपोरेट, लाबीज, दल और नेता मिलकर अपने-अपने पक्ष के पोल के जोर पर इस कदर हल्ला मचाते हैं कि यथार्थ गायब हो जाता है, और एक ‘फेक’ (मिथ्या) यथार्थ सामने खड़ा कर दिया जाता है और उस पर मुहर भी लगवा दी जाती है. अमेरिका में तो बाद में भी कुछ जांच आदि की बात होती है, जो अंतत: रफा-दफा कर दी जाती हैं, लेकिन अपने यहां तो शक करना भी गुनाह है. सर्वे करना एक कला है. सारे जवाब सवालों के तरीके से तय होते हैं. आप किस तरह से क्या किससे पूछते हैं, यह कौशल अगर आपको आता है, तो आप ‘हुकुम के मुताबिक’ (मेड टू ऑर्डर) जबाव पैदा कर सकते हैं.

सुधीश पचौरी
लेखक


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