कपड़ा उद्योग में कैसे आएगी जान!

Last Updated 19 Apr 2014 12:36:34 AM IST

देश में कृषि के बाद सबसे अधिक करीब साढ़े चार करोड़ लोगों को रोजगार देने वाला टेक्सटाइल उद्योग देश का महत्वपूर्ण उद्योग है.


कपड़ा उद्योग में कैसे आएगी जान!

इन दिनों देश-दुनिया के अर्थ विशेषज्ञ कहते दिख रहे हैं कि 16 मई को 16वीं लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद केन्द्र में बनने वाली नई सरकार द्वारा रोजगार और निर्यात बढ़ाने हेतु टेक्सटाइल उद्योग को प्राथमिकता देना जरूरी होगा. पिछले वित्त वर्ष 2013-14 में टेक्सटाइल उद्योग में न निर्धारित रोजगार लक्ष्य प्राप्त हो सका है और न निर्यात का लक्ष्य हासिल हो पाया है. पिछले वित्त वर्ष में टेक्सटाइल उद्योग का निर्यात लक्ष्य 43 अरब डॉलर था जिसकी प्राप्ति करीब 20 फीसद कम रही है. यही नहीं, पिछले वित्त वर्ष में गारमेंट निर्यात का जो लक्ष्य 18 अरब डॉलर का था, वह 15 अरब डॉलर तक ही सिमट गया.

देश में कृषि के बाद सबसे अधिक करीब साढ़े चार करोड़ लोगों को रोजगार देने वाला टेक्सटाइल उद्योग देश का महत्वपूर्ण उद्योग है. इस सेक्टर में कॉटन से लेकर यार्न, फेब्रिक व रेडीमेड गारमेंट शामिल हैं. इस समय दुनिया में चीन के बाद भारत टेक्सटाइल उत्पादन में दूसरे क्रम पर है. भारत के टेक्सटाइल उद्योग का देश के औद्योगिक उत्पादन में करीब 14 प्रतिशत, कुल निर्यात में 12 प्रतिशत और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में चार प्रतिशत का योगदान है. यही देश का एकमात्र उद्योग है जो कच्चे माल से लेकर पूर्ण उत्पाद तक  पूरी तरह आत्म निर्भर है. खासतौर से जनवरी 2005 में जब टेक्सटाइल उद्योग वैश्विक टेक्सटाइल बाजार में कोटा व्यवस्था से मुक्त हुआ, तब से भारतीय टेक्सटाइल उद्योग चीन ही नहीं, श्रीलंका, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान जैसे देशों के साथ गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है.

यदि नई सरकार भारत से टेक्सटाइल निर्यात को पर्याप्त प्रोत्साहन दे तो निर्यात बढ़ेंगे. भारत के कुल कपड़ा निर्यात में करीब 65 प्रतिशत योगदान वाले अमेरिका और यूरोप के बाजारों में जहां फिर से भारतीय निर्यात बढ़े हैं, वहीं कुछ हद तक लैटिन अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, इस्रइल और जापान जैसे उभरते बाजारों में भी टेक्सटाइल निर्यात बढ़े हैं. डॉलर के मुकाबले चीनी युआन की मजबूती और चीन में श्रम शक्ति महंगी होने से भी चीन की तुलना में भारतीय निर्यातक वैश्विक बाजार में खुद को ज्यादा प्रतिस्पर्धी स्थिति में पा रहे हैं.

भारत द्वारा श्रमिकों के न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी, बाल श्रमिकों की संख्या में गिरावट और श्रमिकों के स्वास्थ्य व अन्य सुरक्षा मामले में अंतरराष्ट्रीय मानक अपनाने से बड़े ब्रांड के गारमेंट रिटेलर्स प्रमुख रूप से वालमार्ट, गैप, अमेरिकन एग्ले, टारगेट, टॉमी, नाइक, सारा ली, पॉल स्मिथ, रिवर आइलैंड, जारा आदि अब भारतीय गारमेंट निर्माताओं को प्राथमिकता दे रहे हैं. इसके बावजूद अब भी विश्व टेक्सटाइल बाजार में भारत को चीन के समकक्ष लक्ष्य हेतु कई चुनौतियों का सामना करना होगा.

वस्तुत: टेक्सटाइल उद्योग को पूंजी की कमी, महंगा कच्चा माल तथा श्रम मुद्दों के अलावा घरेलू व वैश्विक बाजार में कमजोर मांग समेत विभिन्न चुनौतियां झेलनी पड़ सकती हैं. टेक्सटाइल उद्योग के लिए अन्य प्रमुख चुनौती उत्पादन की बढ़ती लागत को लेकर है. ईधन कीमतों में तेजी से लागत पर दबाव बढ़ा है. बिजली कटौती से भी इकाइयां प्रभावित हो रही हैं. टेक्सटाइल की अंतरराष्ट्रीय मांग पूरा करने के  लिए उच्च गुणवत्ता के  मापदंडों पर भारत अब भी पीछे है. उत्पादकता वृद्धि के  लिए इस क्षेत्र में प्रशिक्षित और योग्य लोगों की कमी बनी हुई है.  

अपेक्षित लक्ष्य की जहां तक बात है, वर्तमान में देश में कपड़े की खपत प्रति व्यक्ति 46 मीटर है. इसमें 25 फीसद बढ़ोतरी का लक्ष्य तय हो. पावरलूम सब्सिडी में बढ़ोतरी हो. गारमेंट एक्सपोर्ट में 30 फीसद तक बढ़ोतरी के साथ गारमेंट निर्यात बढ़ाने के लिए नए रणनीतिक कदम उठाए जाएं. जो फैब्रिक देश में उपलब्ध नहीं हैं, उन पर आयात शुल्क कम हो. एक्सपोर्ट क्रेडिट की अवधि 90 दिन से बढ़ा 365 की जाए. कस्टम क्लीयरेंस में तेजी लाई जाए.

टेक्सटाइल उद्योग को प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत लाते हुए टेक्सटाइल इकाइयों को आसान कर्ज दिया जाए. सरकार नई टेक्सटाइल नीति में ऐसे प्रोत्साहन पैकेज प्रस्तुत करे, जिसमें ब्याज दरों में अतिरिक्त छूट और कच्चे माल के आयात पर शुल्क रियायत के अलावा कार्यशील पूंजी पर देय ब्याज में अतिरिक्त छूट मिले. भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण मंजूरी व बिजली समस्या की वजह से जिन टेक्सटाइल पाकरे का काम सालों से अधर में है, उनके क्रियान्वयन के लिए शीघ्रता से कदम बढ़ाए जाएं.

प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी दूर करने के लिए अपेरेल ट्रेनिंग एंड डिजाइन सेंटर (एटीडीसी) द्वारा चलाए जा रहे पाठ्यक्रम बढ़ाये जाएं. मनरेगा के तहत टेक्सटाइल श्रमिकों को प्रशिक्षित करने की सिफारिश को मूर्त रूप दिया जाए. साथ-साथ टेक्सटाइल उद्योग संबंधी श्रम कानूनों को लचीला बनाया जाए. ऐसे उद्यमियों का भरपूर स्वागत होना चाहिए जो टेक्सटाइल के  खुले विश्व बाजार में कदम बढ़ाने को तैयार हों. उन्हें नई टेक्नोलॉजी तथा मशीनरी के  लिए हरसंभव सहयोग मिले. टेक्सटाइल उद्योग के  लिए केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा और अधिक आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए.

गौरतलब है कि देश में औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार घटने की रिपोर्टों के बीच टेक्सटाइल उद्योग में रोजगार बढ़ने की संभावनाएं राहत देती दिख रही हैं. रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने शोध अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट में कहा है कि 2013 से 2019 के दौरान गैर कृषि रोजगार की दर में 25 फीसद से अधिक की कमी आएगी और गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार की जो संख्या 5.2 करोड़ है, वह घटकर 3.8 करोड़ रह जाएगी. रोजगार के बारे में यह रिपोर्ट चौंकाने वाली है.

गैर कृषि क्षेत्र के रोजगार में कमी का अर्थ होगा अप्रैल 2013 से आगे के छह सालों के दौरान 1.4 करोड़ लोग दोबारा कृषि कार्य अपनाएंगे जबकि अप्रैल 2005 के बाद के सात सालों के दौरान 3.7 करोड़ लोगों ने कृषि छोड़ विनिर्माण और अन्य क्षेत्र में कदम बढ़ाए थे. ऐसे में नई सरकार द्वारा 2014 में टेक्सटाइल नीति के तहत टेक्सटाइल उद्योग की तस्वीर संवारने के लिए चमकीली योजना प्रस्तुत हो और उसके अनुरूप आगे बढ़ने के प्रयास किए जाएं तो न केवल टेक्सटाइल उद्योग रोजगार के अवसरों में भारी वृद्धि करता दिखेगा, वरन टेक्सटाइल निर्यात से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति भी बढ़ेगी.

टेक्सटाइल उद्योग को ऐसी नीति की दरकार है जहां आकषर्क ब्याज  दरों के साथ आयात शुल्क में छूट और विभिन्न रियायतों का समावेश हो. तभी निर्यात क्षेत्र प्रतिस्पर्धा में सक्षम होगा और  निर्यात बढ़ेगा. तभी ‘मेड इन इंडिया’ ब्रांड को टेक्सटाइल के अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिक  लोकप्रियता मिलेगी. बड़ी संख्या में रोजगार के अवसरों का सृजन होगा तथा टेक्सटाइल उद्योग अधिक विदेशी मुद्रा कमाकर चालू खाता घाटे (केड) से जूझ रही अर्थव्यवस्था को मुस्कराहट देता दिखाई देगा.

जयंतीलाल भंडारी
लेखक


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