पर्यावरण संरक्षण के लिए क्यों न मिले कर में राहत !

Last Updated 09 Feb 2013 04:35:22 PM IST

सरकार को एक प्रभावी और कुशल कोष उपयोग ढांचा विकसित करना चाहिए.


पर्यावरण संरक्षण के लिए कर में राहत (फाइल फोटो)

रजनी झा

ताकि वाणिज्यिक बैंक अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और जल प्रबंधन जैसे क्षेत्रों को कर्ज देने में सक्षम हो सकें. इससे जुड़ी परियोजनाओं में निवेश को प्रोत्साहित भी हों. जरूरत पड़े तो इस मद में खर्च करने के लिए बैंकों को सरकार की तरफ से मदद भी उपलब्ध कराई जाए

ग्लोबल वार्मिग के खतरे से निपटने के लिए आज सारी दुनिया प्रयत्नशील है. भारत में भी इस दिशा में कई प्रयास किए गए हैं लेकिन इसके बावजूद अभी काफी कुछ करने की जरूरत है. पर्यावरण संरक्षण की मद में वर्ष 2013-14 के बजट में एक बड़ी रकम का आवंटन किया जाए तो देश ग्लोबल वार्मिग की चुनौतियों से निपटने में सफल हो सकता है.

इसके लिए अक्षय ऊर्जा, कचरा प्रबंधन और सैनिटरी सोल्यूशंस आदि के लिए प्रोत्साहन जैसे करों और शुल्कों में छूट, उपकरणों के आयात पर डय़ूटी में छूट जैसे उपाय किए जा सकते हैं.

पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार को चाहिए कि एक प्रभावी और कुशल कोष उपयोग ढांचा विकसित करे ताकि वाणिज्यिक बैंक अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा कुशलता और जल प्रबंधन/पुनर्चकण्रजैसे क्षेत्रों को कर्ज देने में सक्षम हो सकें और इससे जुड़ी परियोजनाओं में निवेश को प्रोत्साहित भी हों. जरूरत पड़े तो इस मद में खर्च करने के लिए बैंकों को सरकार की तरफ से मदद भी उपलब्ध कराई जाए.

सरकार को आर्गेनिक कचरा प्रसंस्करण को प्रोत्साहन देना जाना चाहिए. ऐसा आदेश न मानने की स्थिति में दंड का प्रावधान भी होना चाहिए. साथ ही आर्गेनिक कचरा प्रोसेसर्स से आकर्षक दरों पर कंपोस्ट की खरीद के लिए सरकारी मदद का प्रावधान भी होना चाहिए.

इसके अलावा इस क्षेत्र से जुड़े उद्योगों का मानना है कि मिनी टिपर्स, रिफ्यूज कम्पैक्टर्स, टिपर ट्रक्स, गार्बेज बिंस, गार्बेज कंटेनर्स, पावर स्वीपिंग मशीन, हुक लोडर्स-बल्क ट्रांसपोर्टेशन, गार्बेज कंपेक्शन यूनिट्स, जैसे ठोस कचरा उपकरणों के लिए अनुदान भी दिया जाना चाहिए.

उद्योग जगत का मानना है कि कचरा जल पुनर्चक्रण, कचरा पुनर्चक्रण, हरित क्षेत्र, ई-कचरा प्रसंस्करण संयंत्र, उन्नत प्रदूषण नियंतण्रतकनीक जैसे फ्लू गैस डी-सल्फराइजेशन, उन्नत जल कचरा प्रबंधन संयंत्र जैसे एमबीआर, ओजोन ट्रीटमेंट आदि में निवेश के लिए पहले साल में अवमूल्यन की 100 प्रतिशत भरपाई होनी चाहिए.

निर्माताओं के लिए वैट से छूट और आधुनिक प्रदूषण नियंतण्रउपकरणों या व्यवस्था, जैसे फ्लू गैस डी-सल्फराइजेशन, उन्नत जल कचरा प्रबंधन व्यवस्था जैसे एमबीआर, ओजोन प्रबंधन, वायु की गुणवत्ता के लिए पर्यावरणीय निगरानी उपकरण, उत्सर्जन, कोलाहल निगरानी, जल गुणवत्ता, कंपोस्टिंग प्रोसेस कंट्रोल, कंपोस्ट गुणवत्ता निगरानी आदि से जुड़े उपकरणों के आयातकों को कस्टम यानी सीमा शुल्क से छूट मिलनी चाहिए.

इसके अलावा ग्लोबल वार्मिग की चुनौतियों से निपटने के लिए किसानों को उचित दरों पर कंपोस्ट उपलब्ध कराने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ाने के क्रम में प्रति टन र्फटलिाइजर कंट्रोल ऑर्डर (एफसीओ) के अनुरूप बनाए जाने वाले सिटी कंपोस्ट पर 2320 रु पए की विपणन सहायता दी जानी चाहिए.

शहरी ठोस कचरा प्रबंधन के जरिए उत्पादित 100 प्रतिशत कंपोस्ट की खरीद शहरी स्थानीय इकाइयों द्वारा की जानी चाहिए, बशर्ते वह गुणवत्ता मानकों पर खरा उतरे. देश में नगरपालिका द्वारा किया जाने वाला वित्त पोषण बेहद खराब हालत में है. भारत में सलाह की कीमत दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में बेहद कम है. शहरी ठोस कचरा प्रबंधन उद्योग बड़ी आबादी की सेवा कर रहा है.

यह वायु और जल दोनों प्रकार के प्रदूषण नियंतण्रमें भी मदद करता है. ऐसे में भारत में घरेलू उत्पादित उपकरणों की अनुपलब्धता के कारण एमएसडब्ल्यू 2000 के तहत चलने वाले प्रोजेक्ट के लिए जरूरी उपकरणों के आयात पर उद्योग जगत ने सीमा शुल्क में कमी की मांग भी की है. उद्योग जगत का मानना है कि मानकों यानी गुणवत्ता पर खरे उतरने की स्थिति में ट्रीटमेंट किए गए 100 फीसद पानी की खरीद शहरी स्थानीय इकाइयों द्वारा की जानी चाहिए.

बजट 2013-14 में ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में कमी से संबद्ध प्रोजेक्ट से जुड़ने के लिए कारपोरेट सेक्टर को प्रोत्साहन और र्सटफिाइड एमिजन रीडक्शन (सीईआर) की बिक्री से होने वाली आय को आयकर से छूट मिलनी चाहिए. इसे कैपिटल रिसीप्ट की तरह देखा जाना चाहिए, जिसपर कर नहीं लगता हो, क्योंकि सीईआर ऐसे पूंजी सघन प्रोजेक्ट का प्रतिफल है, जिसमें निवेश पर कम रिटर्न है.

इतना ही नहीं, सीडीएम प्रोजेक्ट कोEOFप्टेशन फंड के रूप में यूएनएफसीसीसी द्वारा 2 प्रतिशत की कटौती के बाद सीईआर प्राप्त होता है, ऐसे में सीएसआर क्रियाकलापों के लिए 2 और प्रतिशत की कटौती की जरूरत है.

देश पर्यावरण की गंभीर समस्या से जूझ रहा है और देखा जा रहा है कि लगभग 30 प्रतिशत शहरी कचरों में विभिन्न प्रकार के पैकेजिंग कचरे जैसे, प्लास्टिक, धातु, शीशा, पेपर आदि होते हैं और जिनका उपयोग विभिन्न उद्योगों द्वारा किया जा रहा है.

इन उद्योगों को पर्यावरण मित्र वस्तुओं का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने के क्रम में सरकार को कुछ स्कीमों की घोषणा करनी चाहिए. यह अप्रत्यक्ष करों की वापसी, सब्सिडी या आयकर से छूट देने के रूप में हो सकता है, या फिर यह ऐसे पैकेजिंग वस्तुओं के निर्माण के लिए पूंजीगत वस्तुओं के आयात पर लिए जाने वाले आयात शुल्कों में छूट के रूप में हो सकता है.

स्ट्रा बेलिंग यूनिट्स को कम दरों पर वित्त पोषण किया जाना चाहिए. बायोमास ब्राइक्विटिंग यूनिट्स की स्थापना के लिए जरूरी सहायता व समर्थन होना चाहिए, ताकि कृषि कार्य से निकलने वाली चीजों के लिए किसानों को कुछ रकम मिल सके. इससे किसानों को इन कचरों को खेत में जलाने के बदले उसका संग्रह करने या कहीं ले जाने के लिए उसकी कीमत नहीं चुकानी पड़े.

(लेखक वित्तीय विश्लेषक हैं)

 



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