‘आधार’ का आधार बचाने की कोशिश

Last Updated 07 Feb 2012 12:16:03 AM IST

पिछले दिनों भारतीय विशिष्ट पहचान संख्या प्राधिकरण यूआईडीएआई की आधार परियोजना के संबंध में गृह मंत्रालय की आपत्तियों के बाद प्रधानमंत्री की पहल पर कैबिनेट समिति ने यूआईडी कार्ड/आधार नंबर को लेकर गृह मंत्रालय, यूआईडी प्राधिकरण व योजना आयोग के बीच जारी विवाद का पटाक्षेप करा दिया है.


सरकार ने इसका दायरा तीन गुना बढ़ाने का फैसला किया है. आधार परियोजना को लेकर असली विवाद सभी नागरिकों के बायोमेट्रिक आंकड़े जुटाने को लेकर था. गृह मंत्रालय का कहना था कि महापंजीयक को एनपीआर के जरिए आंकड़े जुटाने का काम पहले ही दिया जा चुका है.

लेकिन नंदन नीलेकणि के नेतृत्व में आधार योजना को भी ये आंकड़े जुटाने के लिए अधिकृत किया गया है. गृह मंत्रालय इसके तहत बाहरी एजेंसी के जरिए आंकड़े जुटाए जाने और उनकी विसनीयता को लेकर चिंतित था लेकिन अब गृहमंत्री पी चिदंबरम ने यूआईडी प्राधिकरण के प्रमुख नंदन नीलेकणि व योजना अयोग उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया की मौजूदगी में कहा कि आधार का दायरा 20 करोड़ से बढ़ाकर 60 करोड़ किया गया है.

बायोमेट्रिक आंकड़े एकत्र करने में दोहराव की गुंजाइश खत्म करते हुए तय किया गया है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) व यूआईडी तैयार करने के लिए दो बार आंकड़े नहीं लिए जाएंगे. एक एजेंसी के आंकड़ों को दूसरी एजेंसी स्वीकार करेगी. यूआईडी का कार्य 16 राज्यों और केन्द्र शासित क्षेत्रों में जारी रहेगा, अन्य राज्यों में एनपीआर कार्य करेगा.

हर भारतीय को पहचान पत्र और विशिष्ट पहचान (यूआईडी) नंबर देने की शुरुआत 29 सितम्बर 2010 को महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले के तेंबली गांव से हुई थी. इसके लिए पंजीकृत होने के बाद लोगों की अंगुलियों के निशान, आंखों की पुतली की छाप तथा तस्वीर ली जाती है. इसका मकसद लोगों को एक खास पहचान देना और सरकारी योजनाओं का लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचाना है. लेकिन आधार परियोजना को लेकर अभी भी कुछ बड़े प्रश्न हैं जो सरकार के लिए कभी भी दिक्कत पैदा कर सकते हैं और विवाद भी बढ़ सकता है-मसलन यूआईडीएआई का कानूनी आधार क्या है और इस प्रोजेक्ट को अभी संसद से मंजूरी नहीं मिली है.

तीन  साल पहले विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यानी यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी (यूआईडीआईए) का गठन किया गया था. इसका मकसद नागरिकों की पहचान और सामाजिक योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाने के लिए एक सुरक्षित तकनीकी बयोमेट्रिक डाटाबेस मुहैया कराना था. आईटी दिग्गज नंदन नीलेकणि को निदेशक बनाकर पांच सालों में करीब 60 करोड़ लोगों को विशिष्ट पहचान पत्र (यूआईडी या आधार कार्ड) देने का लक्ष्य रखा गया.

इंफोसिस के सह अयक्ष रहे नीलेकणि की अगुवाई में यह काम 31 मार्च 2012 तक पूरा होना था लेकिन शुरुआत से ही योजना विवादों के घेरे में आ गई थी. गृह मंत्रालय की दलील थी कि जब देश में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर बनाने का काम चल ही रहा है तो फिर अलग से किसी कार्ड की क्या जरूरत है! कैबिनेट समिति ने फिलहाल  बीच का रास्ता निकाला  है, ताकि गृह मंत्रालय के तहत बन रहे एनपीआर और यूआईडी दोनों योजनाएं बिना दिक्कत के साथ-साथ चल सकें और उनमें कोई दोहराव न हो.

यूआईडी प्राधिकरण की मियाद बढ़ने से 2015 तक 60 करोड़ आबादी यूआईडी से जोड़ी जा सकेगी. हालांकि सरकार के ही दो महकमों की लड़ाई इसके रास्ते में रोड़े अटका रही थी. संसदीय समिति ने नेशनल आइडेंटिफिकेशन विधेयक खारिज कर दिया था. पिछले दिनों योजना आयोग, गृह मंत्रालय के बाद वित्त मंत्रालय से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने भी सुरक्षा जोखिम, निजता के संरक्षण के प्रावधानों की कमी और फिंगर प्रिंट और पुतलियों के स्कैन की तकनीक पर सवाल उठाये.

वित्तीय मामलों पर यशवंत सिन्हा की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने सवाल उठाया है कि नंदन नीलेकणि के नेतृत्व में यूआईडी प्रोजेक्ट संसद से मंजूरी लिए बिना लाखों लोगों की निजी जानकारी कैसे इकट्ठा कर रहा है. अगर एनआईए बिल पास हुआ होता तो प्रोजेक्ट को कानूनी आधार मिल गया होता, लेकिन कमिटी के मुताबिक समस्या यह है कि सरकार ने क्यों यूआईडी को बिनी किसी कानूनी आधार के तकरीबन तीन साल तक काम करने दिया.

यही नहीं, यूआईडी प्रोजेक्ट के तहत जारी आधार कार्ड गैरकानूनी प्रवासियों को भी मिल सकता है, जिससे उन्हें सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी योजनाओं का फायदा उठाने और नागरिकता पाने का रास्ता मिल सकता है. आधार को लेकर चल रहे विवादों की वजह से ही प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा. क्योकि प्रधानमंत्री के कहने पर ही नीलेकणि ने आईटी की दुनिया छोड़ देश के प्रत्येक नागरिक को एक भारतीय होने का पहचान पत्र और नागरिक संख्या उपलब्ध कराने का जिम्मा संभाला था.

मुद्दे की गहरी पड़ताल की जाये तो प्रतीत होता है कि गृह मंत्रालय आधार की बढ़ती लोकप्रियता कमजोर कर नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को प्रमुखता देना चाहता है.  एनपीआर भी लगभग ‘आधार’ जैसा ही एक प्रयास है जो देश में लोगों की आबादी के अतिरिक्त कुछ अन्य सूचनाएं एकत्र कर रहा है.  गृह मंत्रालय ने यूआईडीए की स्थापना और इसकी स्वायत्तता पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया था.

सच यह है की यूआईडीए की स्थापना और इसकी स्वायत्ता तब तक मान्य नहीं है जब तक नेशनल अथॉरिटी ऑफ इंडिया बिल 2010 संसद द्वारा पारित नहीं हो जाता.

विशेषज्ञों के अनुसार यह कैसे संभव है कि जिस संस्था का संवैधानिक आधार न हो, वह नागरिकों की निजी जानकारी ले रही है. देश की संसद जब तक उसे कानूनी रूप ना दे दे, तब तक इस पर इतनी बड़ी राशि का व्यय तर्कसंगत नहीं लगता. इसके द्वारा इस स्थिति में ‘आधार कार्ड’ निर्गत करना क्या कानूनी दस्तावेज हो सकता है?

समझ नहीं आता कि आधार परियोजना शुरू किये जाने के पहले इससे सम्बंधित आपत्तियों की ठीक से पड़ताल क्यों नहीं की गई? जब परियोजना पर अरबों खर्च किये हो चुके हैं, तब इसे लेकर विवाद ठीक नहीं है. प्रधानमंत्री ने इस मसले पर हस्तक्षेप कर सकारात्मक संकेत दिया है. प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से सरकार के मंत्रियो के बीच विवाद सुलझता नजर आ रहा है. फिलहाल सरकार द्वारा आधार परियोजना की बुनियाद बचाने की कोशिश हो रही है ,लेकिन यह कितनी सफल होगी, समय ही बताएगा.

शशांक द्विवेदी
लेखक


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