बहुविवाह में भत्ता

Last Updated 22 Sep 2025 02:52:23 PM IST

कोई मुसलमान पुरुष अपनी बीवी का भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे दूसरी या तीसरी शादी करने का हक नहीं है। केरल हाई कोर्ट ने 39 साल की महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह कहा।


बहुविवाह में भत्ता

पीड़िता ने भीख मांग कर गुजारा कर रहे पति से दस हजार रुपये मासिक गुजारा भत्ता मांगा है। 46 वर्षीय नेत्रहीन पति उसे छोड़कर पहली पत्नी के साथ रह रहा है, और तीसरा निकाह करने की धमकी दे रहा है। परिवार न्यायालय ने यह कह कर याचिका ठुकरा दी थी कि जो खुद भीख मांग कर गुजर कर रहा है, उसे गुजारा भत्ता देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता। चूंकि प्रतिवादी मुसलमान है और पारंपरिक कानून का लाभ उठा रहा है, जो पुरुषों को चार शादियों का अधिकार देता है।

हालांकि इस्लाम में जो शख्स दूसरी/तीसरी बीवी का भरण-पोषण नहीं कर सकता है, वह भी प्रथागत कानून के अनुसार दोबारा निकाह नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि मुसलमानों में इस तरह की शादियां शिक्षा की कमी, धार्मिक कानूनों की जानकारी के अभाव के कारण होती हैं। कोई भी अदालत किसी मुसलमान पुरुष की दूसरी/तीसरी शादी को मान्यता नहीं दे सकती, जब वह अपनी पत्नियों के भरण-पोषण में असमर्थ हो।

अदलत ने मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ कुरान की आयतों की दलील देते हुए कहा कि बहुविवाह अपवाद है। पहली पत्नी, दूसरी, तीसरी और चौथी पत्नी को जो मुसलमान पति न्याय दे सकता है, तो एक बार से ज्यादा शादी जायज है। बेशक, मुसलमानों में बहुत छोटा सा तबका बहुविवाह करता है। इस मामले में अदालत ने भीख मांगने वाले को उचित परामर्श देने को कहा। बहुविवाह की शिकार बेसहारा पत्नियों की रक्षा करने को राज्य सरकार का कर्त्तव्य भी बताया।

यह कहना भी गलत नहीं कहा जा सकता कि उसका पति विवाह के वक्त भी भिक्षावृत्ति ही करता रहा होगा। याचिकाकर्ता सब जानते-बूझते इस वैवाहिक बंधन में गई। तलाकयाफ्ता पत्नी का अधिकार है गुजारा-भत्ता मांगना। मगर महिलाओं को श्रम करके भी दो जून की रोटी कमाने का प्रयास करने में हिचकना नहीं चाहिए। राज्य सरकारों को निराश्रितों के खाने-जीने की सुविधा का जिम्मा उठाने की ठोस व्यवस्था करनी चाहिए। मस्जिदों, मौलवियों, समाज और न्यायपालिका को भी बहुविवाह पर उचित परामर्श देने का प्रयास करना चाहिए। 



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