मणिपुर में शांति स्थापना जरूरी
वर्तमान में मणिपुर देश का एकमात्र राज्य है, जहां राष्ट्रपति शासन लागू है। मैतई-कुकी के खूनी संघर्ष के चलते इसी साल फरवरी में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था।
![]() शांति स्थापना जरूरी |
1967 के बाद से मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगने का ग्यारहवां उदाहरण है। अब मणिपुर अखंडता पर समन्वय समिति ने कुकी-जो समुदाय के दो प्रमुख संगठनों द्वारा सरकार के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। कोकोमी शांति स्थापित करने के लिए रोडमैप तैयार कर रहा है।
केंद्र व राज्य सरकार ने कुकी-जो विद्रोही समूहों के साथ पनुर्निधारित नियमों, शतरे या आधारभूत नियमों के साथ विशेष सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर किए।
गृह मंत्रालय का कहना है कि नागरिक समाज संगठनों के इन समूहों द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग-2 को यात्रियों और जरूरी वस्तुओं की आवाजाही के लिए खोलने पर सहमति व्यक्त की है। मई, 2023 में राज्य में कुकी-मैतई के दरम्यान हिंसा के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपेक्षित यात्रा को लेकर यह व्यवस्था किए जाने की चर्चा है।
पूर्वनिर्धारित कार्यक्रमानुसार मोदी 13 सितम्बर को वहां जा सकते हैं। जातीय संघर्ष में ढाई सौ से ज्यादा जानें जा चुकी हैं। जनजीवन अस्त-व्यस्त है। सरकारी इमारतों को क्षति पहुंचाने के अलावा स्थानीय रोजगार ठप पड़े हैं। सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ों ने आम नागरिकों के भीतर दहशत भर दी है।
साठ हजार से ज्यादा लोग अपने घरों को अब तक लौट नहीं पाए हैं। सामान्य स्थिति की बहाली को लेकर जनता में निश्चितता देखी जा सकती है। हालांकि यह राजनीतिक दांव भी हो सकता है क्योंकि अरसे से मोदी के लगातार चुनावी रैलियों में शामिल होने पर विपक्ष निशाना साध रहा था।
मणिपुर में शांति बहाली के लिए केंद्र का उपेक्षाभाव देख सवाल उठना लाजिमी था। बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां बढ़ चुकी हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि आलोचनाओं को थामने के लिए मोदी की यह यात्रा हो सकती है, जहां कुछ योजनाओं का ऐलान कर वे अपने जिम्मेदाराना व्यवहार का अहसास कराना चाहेंगे।
संघषर्ग्रस्त राज्य में शांति बहाली केंद्र को अपनी प्राथमिकताओं में रखना चाहिए। चुनावी चकल्लस के अतिरिक्त प्रधानमंत्री मोदी को ख्याल रखना होगा कि देश के किसी भी कोने को उपेक्षित न रहने दिया जाए और शांति स्थापित करने के प्रति यथाशीघ्र विशेष सतर्कता बरती जाए।
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