युद्ध और अ-शांति

Last Updated 04 Jun 2025 12:44:39 PM IST

यूक्रेन और रूस के बीच तुर्किये में शांति वार्ता का दूसरा दौर चल रहा है। इस खबर से दुनिया भर में राहत की सांस ली जानी चाहिए थी, लेकिन कोई इसके सार्थक परिणामों की उम्मीद नहीं कर रहा।


युद्ध और अ-शांति

दोनों देशों में अभी तक मृत सैनिकों के शवों और घायल सैनिकों की अदला-बदली पर ही सहमति बनी है, जबकि युद्ध तीन साल से बदस्तूर जारी है। दोनों देशों में हो रही वार्ता की तुर्किए के विदेश मंत्री हकन फिदान अध्यक्षता कर रहे हैं। रूस और यूक्रेन के वरिष्ठ अधिकारियों की हालिया टिप्पणियों से पहले ही संकेत मिल चुके हैं कि युद्ध को रोकने की दिशा में फिलहाल कोई ठोस प्रगति नहीं होने जा रही है। जंग का हाल ये है कि रोज इसकी गंभीरता बढ़ती जा रही है।

अग्रिम मोच्रे पर भीषण लड़ाई चल रही है और दोनों पक्ष एक-दूसरे के क्षेत्र में भीतर तक हमले कर रहे हैं। पहले इस युद्ध में यूक्रेन को कमजोर समझा जा रहा था और पूरी दुनिया मान बैठी थी कि यूक्रेन जल्द ही हथियार डाल देगा और रूसी राष्ट्रपति पुतिन अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे, लेकिन यूक्रेनी सेना इस युद्ध को तीसरे साल तक खींचने में कामयाब रही है। रविवार को तो यूक्रेन ने रूस को एसा सबक सिखाया जिसे पुतिन और रूसी सेना कभी नहीं भूल पाएगी।

यूक्रेनी सेना ने ड्रोन हमले करके रूस के भीतर कई अहम एयर स्ट्रिप को बरबाद कर 40 से अधिक रूसी विमानों की कब्रगाह बना डाली। खिसियाया रूसी रक्षा मंत्रालय मार गिराए गए यूक्रेनी ड्रोन की संख्या बताकर ही खीझ मिटा रहा है। यूक्रेन पर रूसी हमले पहले की तरह जारी हैं। युद्ध अब अत्याधुनिक पैंतरेबाजी तक पहुंच गया है। इसमें अब सैनिकों से ज्यादा ड्रोन की भूमिका हो गई है। युद्ध को लेकर संयुक्त राष्ट्र और बड़े देशों की भूमिका निंदनीय बनी हुई है।

ये सभी इसे पुतिन का निजी मामला समझकर सुविधाजनक दूरी बनाए हुए हैं। यूक्रेन को सैन्य सामग्री देकर ही नाटो भी संतुष्ट है। अमेरिका  रूस से तेल, गैस और यूरेनियम खरीदन वालों पर 500 फीसद शुल्क लगाने के विधेयक पर विचार की तैयारी कर रहा है। भारत और चीन इसका सीधा शिकार बनेंगे जो रूस से भारी मात्रा में ये सामान खरीद रहे हैं। इस युद्ध से पुतिन भी संकट में हैं, क्योंकि उन्होंने ऐसे युद्ध में गर्दन फंसा ली है जहां से निकलना संभव नहीं हो रहा।

यूक्रेनी शहरों की तबाही और लाखों लोगों के विस्थापन के साथ दुनिया की भी सांस हलक में अटकी है। इस्तांबुल वार्ता का किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जरूरी है।



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