पूर्वोत्तर में प्रकृति का कहर
सिक्किम के छातेन के सैन्य शिविर के भूस्खलन की चपेट में आने से तीन सैनिकों की मौत हो गई और छह सुरक्षाकर्मी लापता हैं। मंगन जिले के लाचेन नगर में लगातार हो रही भारी बारिश के चलते यह भूस्खलन हुआ।
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आधिकारिक बयानों के अनुसार तीनों के शव बरामद लिये गए हैं, जबकि मामूली रूप से चुटहिलों का इलाज जारी है। उधर मणिपुर में नदियों के उफान पर होने व तटबंधों के टूटने से उन्नीस हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। चार दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश के कारण आई बाढ़ से तीन हजार से अधिक घर क्षतिग्रस्त हो गए व बाइस लोगों के लापता होने की खबरें हैं। सात हजार प्रभावित लोगों को राहत शिविरों में पहुंचाया गया है।
बरसात ने बीते 132 सालों का रिकॉर्ड तोड़ा है, जिसके कारण बाढ़, जल-भराव, घर ढहने/ बहने और भुस्खलन के कारण हालात बहुत बिगड़ चुके हैं। ब्रह्मपुत्र व बराक समेत दस से ज्यादा नदियां उफान पर हैं। सिक्किम, असम, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश समेत पूर्वोत्तर बाढ में प्रतिवर्ष की तरह डूब रहा है। सिक्किम के लाचेन व लाचुंग में फंसे हजार से ज्यादा पर्यटकों को सेना व प्रशासन ने हेलीकॉप्टर व बाहनों की मदद से सुरक्षित गंगटोक पहुंचाया। मौसम विभाग ने चेतावनी जारी की है, अगले कुछ दिनों तक वहां भारी बारसात हो सकती है। स्कूल-कॉलेज बंद हैं और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की हिदायत दी जा रही है।
पूर्वोत्तर के अधिकतर राज्य पर्यावरण व जलवायु के नजरिए से संवेदनशील स्थानों में आते हैं। जहां के रहवासियों को भारी बरसात के चलते घरों के ढहने, सड़के बह जाने व भुस्खलन से जूझना पड़ता है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है। देश का 73% क्षेत्र बाढ़ग्रस्त इलाके में आने के बावजूद सरकारी लापरवाही का नतीजा है कि हम आजतक सुरक्षित नहीं हैं। निचले पायदान पर खड़ी जनता की बुनियादी जरूरियात को पूरा करने में कमर टूट जाती है।
बुनियादी ढांचा और सुरक्षित जीवन की गारंटी देने में सरकारें बुरी तरह असफल साबित हैं। प्राकृतिक आपदाओं के विपरीत प्रतिवर्ष बाढ़ से जूझने के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए। बाढ़ से जूझने के नाम पर राज्यों को दी जाने वाली राहत राशि को बेसिक स्ट्रक्चर पर लगाने जैसे कदम उठाकर दीर्घकालिक सुविधाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए। बाढ़, बारिश, लू-धूप या ठंड से जनता के मरने का मतलब है, उनके जीवन के प्रति देश तनिक जवाबदेह नहीं है।
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