बराबरी के छलावे
प्रधान न्यायाधीश बीआर गंवई ने कहा है कि न्यायपालिका व विधायिका का मौलिक कर्त्तव्य है, देश के उस आखिरी नागरिक तक पहुंचना जिसे न्याय की जरूरत है।
![]() प्रधान न्यायाधीश बीआर गंवई |
उन्होंने कहा, जब भी संकट आया, भारत एकजुट रहा। इसका श्रेय संविधान को दिया जाना चाहिए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता चैंबर भवन व मल्टीलेवल पार्किग के उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा, संविधान लागू होने पिछत्तर वर्ष की यात्रा में विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका ने सामाजिक-आर्थिक समानता लाने में बड़ा योगदान दिया है। बार व बेंच को सिक्के के दो पहलू बताते हुए मिल कर काम न करने पर रथ के आगे न बढ़ने की चर्चा भी की।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिवक्ताओं की समस्याएं दर करने के लिए केंद्र के सतत प्रयासरत रहने और अधिवक्ता निधि की राशि बढ़ा कर पांच लाख करने की बात की। पेड़ों के नीचे बैठ कर काम करने वाले वकीलों की चर्चा करते हुए उन्होंने एयरकंडीशनर उनके गुस्से को ठंडा करने जैसी बात की।
बेशक, यह केवल उच्च न्यायालय परिसर की बात थी। देश के किसी भी मुख्यमंत्री को विचारना चाहिए कि अमूमन वकीलों तो क्या जिला जजों के लिए न तो ढंग की बैठने की जगह है, न स्वच्छ/शीतल जल है। एसी तो बहुत दूर की बात है।
प्रधान न्यायाधीश द्वारा की गई मुख्यमंत्री की तारीफ में इसका ख्याल किया जाना लाजिमी था क्योंकि जिलों में कार्यरत वकीलों व न्यायाधिकारियो को भी शीष्राधिकारियों से उम्मीद होती है कि वे उनकी दशा पर भी दो बाले बोलें।
यह पहला मौका था जब प्रधान न्यायाधीश के तौर पर वे इलाहाबाद गए थे। हालांकि उन्होंने अपने वक्तव्य में उन्होंने सेवानिवृत्त होने के बाद आगे की बात कहने पर भी जोर दिया। जैसा कि वे इसी वर्ष नवम्बर में रिटायर हो रहे हैं।
देश की मौजूदा राजनीति में न्यायपालिका की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती जा रही है। संविधान समानता की दिशा तो दे रहा है मगर व्यावहारिक तथ्य यह भी है कि अभी भी बड़ा वर्ग आर्थिक-सामाजिक तौर पर वंचित है जिन्हें राजनीतिक दल केवल वोट बैंक के नजरिए से आंकते हैं। देश का वह आखरी नागरिक आज भी कातर भाव से शीर्ष पर बैठे लोगों को ताक रहा है जिसे न तो अपने अधिकारों का ज्ञान है, न ही उसकी तूती की आवाज में दम है।
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