पीओके के हालात
पीओके में आसमानी महंगाई और बढ़े बिलों से आम आदमी बेहाल है। बेहतर नागरिक व्यवस्था की बहाली के लिए सड़कों पर उतरे लोग हिंसक तक हो रहे हैं। एक पुलिस अधिकारी मारा गया है और 100 के लगभग घायलों में बड़ी तादाद पुलिसकर्मिंयों की है।
पीओके के हालात |
हिंसा का यह घनत्व अहिंसक विरोध से उकताहट को साबित करता है। बुनियादी जरूरतों-सुविधाओं को लेकर पीओके-बाशिंदों का विरोध पाक के अवैध कब्जे के बाद से ही है। पीओके माने पाकिस्तान आक्रांत कश्मीर।
1947 में आजादी के तत्काल बाद बिना उकसावे के पाकिस्तान की तरफ से किए गए हमले में जम्मू-कश्मीर का यह हिस्सा पाक के कब्जे में चला गया था। हालांकि यहां के बाशिंदों का बहुमत तभी से पाकिस्तान से स्वायत्त रहना चाहता था, लेकिन वह पाकिस्तान के कालांतर बढ़ते दमनों के आगे बेबस हो गया। पर भारतीय कश्मीरियों को उनके बनिस्बत मिली बेहतर सुविधाएं और आजादी को लेकर पीओके के मन में न मिटने वाला आकषर्ण बना रहा।
आज स्थिति यह है कि पीओके अवाम नागरिक सुविधाओं के मोहताज हो गए हैं। आटा-दाल का भाव आसमान पर है। वह बिजली भी नदारद है, जिसका पीओके में प्रभूत उत्पादन हो रहा है। लोग देख रहे हैं कि यह स्थिति नहीं बदलने वाली है। भारत में अनुच्छेद 370 के खात्मे के पहले और उसके बाद से सभी सरकारों के लिए कश्मीर प्राथमिकता रहा है। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने ‘विकसित भारत, विकसित जम्मू कश्मीर’ कार्यक्रम में 6400 करोड़ रु पए से ज्यादा की विकास परियोजनाएं दी हैं।
इसमें कृषि और पर्यटन से जुड़े क्षेत्रों में काम होना है। यहां लोगों के पास रोजगार और नौकरियां हैं। इनसे पीओके हालात का कोई मुकाबला नहीं है। तंग आए पीओके के लोग मोदी का गुणगान कर रहे हैं और अपनी सीमा भारत की ओर खोलने की मांग कर रहे हैं। वे इसके लिए आंदोलनरत रहे हैं।
अभी भी वैसी ही स्थिति है। सवाल है कि इसमें भारत की क्या भूमिका हो सकती है? क्या वह हस्तक्षेप कर सकता है? विदेश मंत्री एस जयशंकर के ताजा बयान और भारतीय नेताओं के समय-समय पर दिए गए वक्तव्य इसके संकेत देते हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सीटें पीओके के लिए सुरक्षित भी रखी गई हैं। पीओके में अंतिम हद तक बेकाबू होते हालात भारत के लिए तश्तरी में परोसे गए अवसर इतिहास बदलने वाले होंगे।
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