सहभागी और सक्रिय अदालतें

Last Updated 07 May 2024 01:51:42 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मामलों की सुनवाई में अदालतों को सहभागिता-सक्रियता का निर्देश दिया है। कहा है कि अदालतें गवाहों, खास कर गुमराह हुए गवाहों, के बयान दर्ज करने वाला टेप-रिकार्डर भर नहीं हैं। दरअसल, यह पैसिवनेस है, जो दोतरफा मार करती है।


सहभागी और सक्रिय अदालतें

पहले तो सरकारी वकील ऐसे गवाहों के प्रति ढीले पड़ जाते हैं। वे उससे जरूरी सवाल भी नहीं करते जिनसे कि उसके मुकरने की सटीक वजह मालूम होती। कोई भी आपराधिक मुकदमा गुमराह गवाहों की बदौलत जीता जाता है। इसमें सरकारी वकील, जो अभियोजन पक्ष के होते हैं, वे अपने पैने सवालों से सच उगलवा सकते हैं, पर वे इन सवालों को जानबूझ कर टाल जाते हैं। उनका यह कतराना भी बिका हुआ होता है, जबकि उन्हें सरकार से मोटी पगार मिलती है।

इस स्थिति में बदलाव के लिए सरकारी वकीलों के पदों को वकील की राजनीतिक निष्ठा के आधार पर नहीं, उसकी पेशेवर सक्षमता के अनुसार भरा जाना चाहिए। योग्यता और नैतिक निष्ठा सबसे जरूरी आस्पेक्ट है। गलत और अक्षम वकीलों के चयन से मुकदमा जरूरी स्टेज पर कमजोर होने लगता है। दोषी मुकदमा जीत जाता है। पीड़ित को कभी भरोसा ही नहीं होता कि उसकी सुनवाई निष्पक्ष व पारदर्शी तरीके से होगी, उसे अंतत: न्याय मिलेगा।

यहां सबसे बड़ी क्षति न्यायाधीशों की अ-सक्रियता से होती है, जब वे अपनी भूमिका को गवाहों के बयान दर्ज करने तक सीमित कर अ-सहभागी हो जाते हैं। यह दोहरा घाटा है। इससे न्याय के उस प्राथमिक सिद्धांत का खंडन हो जाता है, जिसे सुलभ कराने के लिए न्यायपालिका का गठन हुआ है। इससे बचने के लिए सर्वोच्च न्यायालय अदालतों से गवाहों से जिरही होने की ताकीद करती है ताकि सच का खुलासा हो सके। मुकदमे पर रोशनी पड़े।

पीड़ितों को न्याय मिले। यह बिल्कुल वाजिब ताकीद है। प्राय: देखा गया है कि बड़े से बड़ा कांड, यहां तक कि नरसंहार मामलों में भी गवाहों के मुकरने और अदालतों के जिरही न होने से दोषी छूटते रहे हैं। इससे न्याय व्यवस्था की भारी किरकिरी होती रही है। सर्वोच्च न्यायालय के ताजा निर्देश में इस नासूर हो चुकी स्थिति की एक बुनियादी पड़ताल है। अदालतों को सक्रिय होना है। इस अंदाज में कि अपराध का दूसरा पहलू सामने आ सके क्योंकि ‘कोई अपराध आखिर में एक व्यक्ति के विरु द्ध ही नहीं, समाज के विरु द्ध भी होता है।’ क्या यह न्यायिक सक्रियता का आगाज है? नहीं, इसकी अपनी सीमा है पर यह कई बार न्याय व जन हित में लाजिमी है।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment