चीन की कुटिलता
चीन ने भारत के विरुद्ध टकराव एवं संघषर्पूर्ण रवैया जारी रखते हुए अरुणाचल प्रदेश के 30 स्थानों के नए नामों की चौथी सूची जारी की है।
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इससे जाहिर होता है कि इसने अपनी विस्तारवादी नीति का परित्याग नहीं किया है। चीन की यह प्रतिक्रिया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 9 मार्च को अरुणाचल प्रदेश की यात्रा के करीब एक पखवाड़े बाद आई है।
हालांकि प्रधानमंत्री की इस यात्रा के समय ही चीन ने अपना राजनयिक विरोध दर्ज कराया था। मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी सेला सुरंग का उद्घाटन किया था। इस सुरंग से क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की आवाजाही सुगम हो जाएगी। भारत सरकार ने अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन की प्रतिक्रिया को खारिज कर दिया है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा। राजनयिक स्थिति यह है कि भारत तिब्बत को चीन का हिस्सा मानता है, लेकिन चीन अरुणाचल प्रदेश को विवादास्पद करार देता है। इसी आधार पर पिछले अनेक वर्षो से चीन की ओर से स्टेपल वीजा जारी किए जाते हैं।
वस्तुत: चीन यह अपेक्षा रखता है कि समूची दुनिया उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करे, लेकिन विडंबना देखिए कि वह स्वयं दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान नहीं करता। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षो के घटनाक्रम से स्पष्ट होता है कि चीन ने दुनिया विशेषकर एशियाई देशों का सहयोग गंवाया है।
जापान, दक्षिण कोरिया, वियेतनाम और कई आसियान देश दक्षिण चीन सागर और आसपास के समुद्री क्षेत्रों में चीन की दादागीरी को लेकर आशंकित हैं। वर्ष 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सेना के दु:स्साहस से उसने भारत का भी विश्वास खोया है।
वस्तुत: अरुणाचल में चीन के अनधिकृत दावे से स्पष्ट होता है कि वह भारत को ऐसा देश समझता है, जिसे कभी भी नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन गलवान घाटी की घटना के बाद भारतीय खेमे में भी दृढ़ता आई है।
चीन तिब्बत को अपना स्वायत्तशासी प्रदेश कहता है तथा भारत भी ‘एक चीन नीति’ के तहत ताइवान के साथ तिब्बत को चीन का हिस्सा स्वीकार करता है। आने वाले दिनों में यह स्थिति बदल सकती है।
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