विपक्ष को मिला क्या
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा अविश्वास प्रस्ताव (no-confidence motion) पर जोरदार जवाब दे दिए जाने के बाद एक सीधा सवाल जो उठता है वह यह है कि आखिर अविश्वास प्रस्ताव लाकर विपक्ष ने क्या पाया।
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अविश्वास प्रस्ताव पर जो बहस हुई उसमें साफ-साफ दिखाई दिया कि विपक्ष के पास न पूरी तैयारी थी, न उसके वक्ताओं के बीच आवश्यक समन्वय था और न उनके वक्तव्यों में वह धार थी जिससे सदन से बाहर के श्रोता प्रभावित होते। उम्मीद थी कि राहुल गांधी ने जिस बचकानी भावुकता के साथ अपना भाषण दिया था उससे बाहर निकलकर अन्य वक्ता अधिक तथ्यपरक रुख अपनाएंगे और अपनी आलोचना को अधिक वस्तुनिष्ठ बनाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
जबकि दूसरी ओर सत्ता पक्ष के हर वक्ता ने अपने निर्धारित भूमिका के अनुसार प्रभावी तरीके से अपनी बात कही और वांछित प्रभाव भी छोड़ा। अविश्वास की बहस का पटाक्षेप जिस तरह हुआ वह विपक्ष के लिए बहुत ही निराशाजनक था। प्रधानमंत्री ने विपक्ष की किसी भी बात का कोई संज्ञान नहीं लिया और वही कहा जो उन्हें कहना था। विपक्ष मणिपुर-मणिपुर चिल्लाता रहा और प्रधानमंत्री अविचल भाव से अपनी बात करते रहे। अंतत: विपक्ष के सब्र का बांध टूट गया और वह सदन से बहिर्गमन कर गया। यही वह क्षण था जब प्रधानमंत्री ने मणिपुर पर अपनी बात शुरू की और सहजता से समाप्त भी कर दी।
उन्होंने मणिपुर के लोगों को भरोसा दिलाते हुए कहा कि नार्थ ईस्ट हमारे जिगर का टुकड़ा है। पूरा देश मणिपुर के लोगों के साथ खड़ा है। हम सब मिलकर इस चुनौती का हल निकालेंगे। मणिपुर में जल्द शांति का सूरज निकलेगा। प्रधानमंत्री ने दोषियों को कड़ी सजा दिलवाने की भी बात की। उनके भाषण में एक संकल्प दिखाई दिया। अब शायद विपक्ष को सोचना पड़ रहा होगा कि ऐसा अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया जिसने उसका बहुत कुछ छिन लिया और मोदी को बहुत कुछ दे दिया।
अविश्वास प्रस्ताव के बहस से कांग्रेस को एक सबक अवश्य लेना चाहिए कि अगर उसे राहुल गांधी को अब भी मोच्रे पर रखना है तो उनकी तैयारी भी वैसी ही होनी चाहिए। वह कभी-कभी जिस अतिरेकी भावुकता का प्रदर्शन करते हैं तो वह प्राय: उल्टा प्रभाव छोड़ती है। अगर कांग्रेस को 2024 के लोक सभा चुनाव में विजय के लक्ष्य की ओर बढ़ना है तो उसके नेताओं की तैयारी भी वैसी ही होनी चाहिए। केवल मोदी निंदा से उन्हें अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं होगा।
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