मणिपुर हिंसा : समिति से उम्मीदें

Last Updated 09 Aug 2023 12:48:37 PM IST

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने आखिर उच्च न्यायालयों की तीन पूर्व महिला न्यायाधीशों की समिति गठित करने का आदेश दिया जो मणिपुर में हिंसा (Manipur Violence) प्रभावित लोगों व उनके पुनर्वास कार्यों की निगरानी करेगी।


मणिपुर में हिंसा प्रभावित लोगों व उनके पुनर्वास कार्यों की निगरानी समिति से उम्मीदें

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत का प्रयास राज्य में कानून के शासन में विश्वास की भावना बहाल करना है। पीठ ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को उन आधिकारिक मामलों की निगरानी करने की बात भी की, जिनकी राज्य एसआईटी जांच करेगी। जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल इस समिति की अध्यक्ष होंगी। उनके साथ न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) शालिनी जोशी व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) आशा मेनन अन्य सदस्य होंगी।

राज्य में महीनों से जारी बेलगाम हिंसा को लेकर सबसे बड़ी अदालत पहले भी नाराजगी व्यक्त कर चुकी है। मणिपुर की आबादी तकरीबन तीस लाख है और अब तक सैकड़ों मौते हो चुकी हैं। अंदाजा है कि पचास हजार से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। जिनके मकानों को आग लगा दी गयी, वे दर-बदर भटकने को मोहताज हैं। स्थानीय कुकी व मैतई के बीच जारी यह संघर्ष उस वक्त सारी दुनिया में चर्चा का केंद्र बन गया जब अचानक दो नग्न महिलाओं को घेर कर सड़कों पर निकली भीड़ का भयावह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।

बताया गया कि यह वीडियो दो महीने पुराना था, जिसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज की जा चुकी थी जो सरकार और स्थानीय प्रशासन के ढीले-ढाले रवैये का उदाहरण बन गया। इसकी सार्वजनिक तौर पर र्भत्सना की गयी। हालांकि घटना के बाद प्रधानमंत्री के इस पर दुख व्यक्त करने के बावजूद जातीय हिंसा, हत्याओं, हमलों व धरना-प्रदर्शनों को लेकर अपनायी गयी केंद्र की चुप्पी सवालिया निशान लगाये रही।

अदालत के हस्तक्षेप को भले ही सरकार के लिए झटका माना जा रहा हो परंतु कई दफा आम जन के मन में सरकारी तौर-तरीकों को लेकर गहरी निराशा पनपती है। तब वे देश की सबसे बड़ी अदालत से गुहार लगाते हैं, जो उनकी इकलौती उम्मीद की किरण साबित होती है। जाहिरा तौर पर यह पीठ राज्य की व्यवस्था के लिए सहायक साबित होगी और जनता के जख्मों पर मलहम का काम कर सकेगी। जब तक इस संकट से निपटने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं नजर आयेगी, तब तक राज्य में शांति बहाली में दिक्कतें आ सकती हैं। अदालत ने अपना फर्ज निभा दिया, अब केंद्र सरकार को फौरी निर्णय लेने होंगे।



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