गरीबों को संबल दे सरकार

Last Updated 08 Aug 2023 01:52:38 PM IST

हरियाणा के नूंह (मेवात) में पिछली 31 जुलाई को हिन्दू संगठनों की ओर से बृजमंडल क्षेत्र की जलाभिषेक यात्रा के दौरान भड़की सांप्रदायिक हिंसा की आग बूझने लगी है।


गरीबों को संबल दे सरकार

दंगे के जो वीडियो  सामने आए हैं उसकी प्रकृति को देखकर यह लग रहा है कि यह हिंसा सुनियोजित थी। बहरहाल, आमतौर पर अपने देश में जैसा होता आया है कि हिंसा में लिप्त दंगाइयों और उपद्रवियों का उन्माद शांत होने के बाद पुलिस और प्रशासन सक्रिय और सतर्क होता है। नूंह में भी अब पुलिस और प्रशासन एक्शन में दिख रहा है। हिंसा के लिए इस्तेमाल की गई मकानों को ध्वस्त किया जा रहा है। रविवार को सुबह नूंह में नल्हड़ रोड पर स्थित एक होटल को जमींदोज कर दिया गया।

करीब सौ मकानों और पांच सौ से ज्यादा झुग्गियों को तोड़ दिया गया। अनेक गिरफ्तारियां भी हुई हैं। हालांकि पुलिस जब इस तरह की कार्रवाई करती है तो कुछ निदरेष भी चपेट में आ जाते हैं। सांप्रदायिक हिंसा की सबसे अधिक मार गरीब अप्रवासी दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक जैसे गरीब तबकों पर पड़ती है। यह ऐसा तबका है जो रोज कमाता और खाता है। हिंसा और कर्फ्यू के कारण बाजार बंद हो जाते हैं। इसके कारण दंगा प्रभावित क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हो जाती हैं। जाहिर है इसका सीधा असर इनकी रोजी-रोटी पर पड़ता है।

कहने की जरूरत नहीं है कि जिन झुग्गियों को तोड़ा गया वे गरीबों के ही रहे होंगे। शासन भी ऐसे समय में इस बात की पड़ताल करने की जहमत नहीं उठाता कि कौन-कौन हिंसा फैलाने और शांति भंग करने में प्रभावी भूमिका में थे और कौन नहीं। सांप्रदायिक दंगे जहां होते हैं उसके आसपास के शहरों और कस्बों की आर्थिक परिस्थितियों को प्रभावित करते हैं। अगर हिंसा और तनाव लंबे समय तक जारी रहता है तो निवेश भी कम हो जाता है। नूंह की हिंसा का असर गुरुग्राम तक हुआ है।

यहां के प्रवासी दिहाड़ी मजदूर भयभीत हैं और अपने गांव-शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। हालांकि सरकार और पुलिस-प्रशासन दंगा प्रभावित क्षेत्रों में शांति बहाल करने का प्रयास कर रहा है। अंग्रेजों ने हिंदू-मुसलमानों के बीच ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति से इसकी शुरुआत की थी। इसलिए इसे औपनिवेशिक शासन की देन कहा जाता है। अब राजनीतिक दल भी वोट बैंक के लिए इस तरह के दंगों को प्रभावित करते हैं। महान क्रांतिकारी भगत सिंह का विास था कि वर्गीय चेतना से दंगों पर नियंतण्रपाया जा सकता है।



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