देश में चौंधियाता विकास
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने रविवार को देश के 508 रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास और विस्तार का आरंभ (Redevelopment and expansion of 508 railway stations started) किया। वास्तव में यह मेगा इवेंट है, जो ‘भारतीय रेलवे के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत है’।
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देश को 24,470 करोड़ की लागत वाली इतनी बड़ी परियोजना की शायद ही याद हो, जो 27 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को एक साथ लाभान्वित करती हो। और जिसके भव्य कार्यक्रम में राजनीतिक-सामाजिक क्षेत्र के इतने नामवर पदधारकों के साथ लाखों लोगों की भागीदारी हुई हो। यह कार्यक्रम प्रबंधन में मोदी की पुरानी मास्टरी का एक क्लासिकल उदाहरण है। सुविधा के साथ ग्लैमरस परिवहन मोदी सरकार के पसंदीदा कार्यक्रम रहे हैं।
गुणवत्ता वाली सड़कों का नियमित विस्तार और उसकी रफ्तार को जनता की वाहवाही मिली है। हालांकि इसकी शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की ‘चतुभरुज योजना’ के तहत हुई थी। सड़क की तुलना में रेलवे स्टेशनों का मेकओवर बाकी था, जो कि देश की लाइफ लाइन का पहला पड़ाव है। उसकी मौजूदा दशा वैसी नहीं थी, जिसे मोदी ‘भारत को अमृत काल के आरंभ में विकसित होने के लक्ष्य की ओर बढ़ता’ हुआ बताते हैं।
तो रेलवे स्टेशनों को नए समय की मांग के मुताबिक संरचनाओं से लैस किया जाना आवश्यक था। रेल समाज के सभी वगरे के उपयोग में आने वाली अपेक्षाकृत सुरक्षित और लोकप्रिय है। इससे सफर करने वाले यात्रियों-कारोबारियों को ‘सामान्य मौलिक सुविधाओं से उन्नत सुविधाएं देना मकसद है, जो इसके साथ नए भारत की छवि को न केवल जनता के मानस में बल्कि विदेशों में भी अंकित कर सके। मोदी सरकार के हर काम की कसौटी उसकी विस्तरीयता होती है।
कहा गया है कि उसकी बिछाई गईं रेल लाइनें ब्रिटेन एवं स्वीडन जैसे विकसित देशों से कहीं ज्यादा हैं। यह सच है। पर वहां के जैसी सुरक्षित और समयबद्ध रेल परिचालन पर बहुत काम करना बाकी है। ‘सकारात्मक राजनीति की राह पर मिशन मोड में बढ़ती’ सरकार को यह काम ध्यान से करना चाहिए। इस काम में विपक्ष कोई अडं़ंगा नहीं डाल रहा है। फिर भी मोदी का विपक्ष पर हमलावर होना उनका एक रणनीतिक अभ्यास है। सड़क के साथ रेलवे मॉस के रोजाना ध्यान में आने वाला और उसकी स्मृतियों में देर तक टिका रहने वाला साधन है। यह विकास विपक्ष को ‘चौंधिया’ सकता है।
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