West Bengal : वोट की लूट रुके
आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पश्चिम बंगाल (West Bengal) में 8 जुलाई को होने जा रहे पंचायत चुनाव (Panchayat Election) में केंद्रीय पुलिस बलों (CRPF) की तैनाती का रास्ता खुलवा दिया है।
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राज्य में तीनस्तरीय पंचायत व्यवस्था के करीब 75,000 पदों के लिए एक ही दिन में चुनाव कराने की राज्य सरकार की हड़बड़ी भरी घोषणा के बाद से मंगलवार 20 जून को नाम वापस लेने की आखिरी तारीख तक ही चुनाव से जुड़ी हिंसा में 9 जानें जा चुकी थीं।
बंगाल में वाम मोर्चा के शासन में जब पंचायती राज व्यवस्था के जरिए जमीनी स्तर पर प्रशासन के जनतांत्रीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई थी, तब से ही इन चुनावों के साथ हिंसा भी लगी रही थी। लेकिन उस दौर में पंचायत चुनाव चूंकि ग्रामीण बंगाल में, सत्ता संतुलन वंचितों-गरीबों के पक्ष में बदलने का प्रतिनिधित्व करते थे, उनमें ज्यादा हिंसा परंपरागत रूप से ग्रामीण क्षेत्र में हावी ताकतों द्वारा की जाती थी। इसका नतीजा था कि सत्ताधारी होते हुए भी वाम मोर्चा को ही इस हिंसा की ज्यादा मार झेलनी पड़ती थी।
बहरहाल, 2011 में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से सत्ता के संरक्षण में हिंसा को ग्रामीण निकायों पर कब्जा करने का प्रमुख हथियार बना लिया गया है। वास्तव में पिछले पंचायत चुनाव में तो राज्य की सत्ताधारी पार्टी की ओर से इतने बड़े पैमाने पर वोट की लूट की गई थी कि उस पर जनता की नाराजगी का 2019 के आम चुनाव में भाजपा को खासा लाभ भी मिला था।
इसलिए, हैरानी नहीं है कि चुनाव की तारीख की घोषणा के साथ ही विपक्षी पार्टियों ने हाई कोर्ट से प्रार्थना की थी कि चुनाव में केंद्रीय बलों की भी उपस्थिति सुनिश्चित की जाए। हाई कोर्ट ने इसका आदेश भी दे दिया लेकिन राज्य सरकार ने चुनौती दे डाली।
इसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की नौबत आई। उसने जनतांत्रिक तरीके से चुनाव सुनिश्चित करने की खातिर केंद्रीय बलों की मदद लेने का निर्देश दिया है। इसके बावजूद, मानकर नहीं चला जा सकता कि अब जनतांत्रिक तरीके से चुनाव हो जाएगा। राज्य चुनाव आयोग ने राज्य के कुल 22 जिलों में केंद्रीय बलों की एक-एक कंपनी यानी लगभग सौ-सौ जवान बुलाने के अपने फैसले से साफ कर दिया है कि केंद्रीय बलों की भूमिका सीमित ही रहेगी। फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार पंचायत चुनावों में हिंसा के जरिए वोट की लूट पर कुछ अंकुश लगेगा।
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