मोदीमय हुआ अमेरिका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) चार दिनों की अपनी पहली राजकीय यात्रा पर अमेरिका (America) में हैं। जैसा कि दिख रहा है,अमेरिका का बाइडेन प्रशासन (Biden Administration) और वहां की जनता मोदी के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
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अमेरिकी सरकार ने जैसे ठान रखी हो कि उनके सम्मान में भव्यता से कोई समझौता नहीं किया जाए। इन सबने समूचे माहौल को मोदीमय बना दिया है-भारतमय बना दिया है। यह सब अनायास नहीं हुआ है। निस्संदेह इसकी प्रारंभिक ठोस शुरुआत मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में 2004 से हुई थी। पर वैश्विक भू-राजनीतिक एवं क्षेत्रीय समीकरणों में आई परस्पर निर्भरता ने उस पर दबाब बढ़ा दिया है। तभी तो भारत ‘ऐतिहासिक झिझक‘ से निकल कर अमेरिका के साथ रक्षा समेत अनेक क्षेत्रों में आगे बढ़ने को तैयार हुआ है।
उसका मानना है कि दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच इस समय अप्रत्याशित विश्वास का वातावरण है। इसका फायदा वह न केवल संधि-समझौतों और सुविधाएं लेने में उठाना चाहता है बल्कि वैश्विक बिरादरी में अपनी उचित हैसियत के रूप में भी पाना चाहता है। मोदी की यह बेबाकी अमेरिका को भली लगी है। उसने कह दिया है कि वह भारत को महाशक्ति बनाने में मदद देगा। आलम यह है कि भारत अगर अमेरिका को थोड़ा भ्रम में भी रखे तो बाइडेन प्रशासन रणनीतिक समीकरण से लेकर भौतिक उपकरणों तक को एक बड़े परात में पेश करने के लिए तत्पर है।
भारत को साधने में फेहरिस्त लंबी कर दी गई है। परस्पर संबंधों का इतना उर्वर पर्यावरण वाकई कभी नहीं रहा। मोदी वहां बातचीत कर रहे हैं-सरकार से लेकर कारोबारी तक से। सबको लग रहा है कि भारत का समय आया हुआ है, कि उसकी विकसित अर्थव्यवस्था है, और कि वह भविष्य की महाशक्ति की सभी संभावनाएं समेटे हुए एक विशाल देश है।
तो क्या मोदी भारत को सीधे अमेरिका की गोद में बिठा देंगे, जिसके बाद हम विश्व मंच पर एक स्वतंत्र आवाज, स्वायत्त और अनुपेक्षित हैसियत से खिसक कर वाशिंगटन का एक नुमांइदा बन कर रह जाएंगे? अमेरिका का भारत को नाटो जोड़ पांच की हैसियत देने के विचार से यह संदेह होता है। यह न केवल अपने देश के विपक्ष एवं तटस्थ विचारकों को है बल्कि दोस्त रूस को और चीन को भी है। क्या वे रूस से संबंध कमजोर करेंगे, चीन को सबक सिखाएंगे, जैसी कि अमेरिकी मंशा है। इसलिए भारत को आगाह किया जा रहा है। पर भारत इस मामले में अपने को भारत बने रहने से कोई समझौता नहीं करेगा।
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