Manipur Violence : केंद्र हालात संभाले
मणिपुर में हिंसा (Manipur Violence) , पांच हफ्ते बाद भी थमी नहीं है। भारी संख्या में रक्षा बलों, जिनमें सेना भी शामिल है, की तैनाती के बावजूद बार-बार हिंसा फूट पड़ती है।
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हालात की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केंद्रीय बल अनेक मामलों में हिंसा को रोकने के लिए इसलिए प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पाए हैं कि उनका रास्ता ऐसी विशाल उग्र भीड़ों ने रोक लिया है, जिन्हें नियंत्रित कर के आगे बढ़ना बड़े पैमाने पर गोलियां चलाए बिना संभव नहीं था। चूंकि यह कीमत बहुत ज्यादा होती इसलिए रक्षा बलों की मौजूदगी बेमानी होकर रह गई है, और हिंसक भीड़ें मनमानी करने में कामयाब हो गई।
पिछले हफ्ते की एक सबसे भयानक घटना में, ठीक इसी तरह हमले की चपेट में आए और सहायता-विहीन छूट गए, कुकी अल्पसंख्यकों के एक गांव के हथियारबंद रक्षा दस्ते की गोलीबारी में, गांव जलाने पहुंची हिंसक भीड़ में से दस लोग मारे गए। उधर, राजधानी इंफाल में ही पिछले हफ्ते में ही राज्य की इकलौती महिला मंत्री और एक केंद्रीय राज्य मंत्री के घर पर भीड़ ने आग लगा दी। याद रहे कि केंद्रीय मंत्री के घर पर आग लगाने वाली भीड़, उसके अपने बहुसंख्यक, मेइती समुदाय से ही थी।
यह वर्तमान शासन-प्रशासन से अल्पंसख्यक-बहुसंख्यक, सभी समुदायों तथा जातीय समूहों की नाराजगी की ओर इशारा करता है, जिसने शासन के लिए हालात को संभालना और मुश्किल बना दिया है। चंद महीने पहले ही चुनकर आई सरकार का हुक्म न तो इंफाल घाटी में चल रहा है, और न ही पहाड़ी इलाकों में। देरी से ही सही, केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद की गई पहलें भी बहुत मददगार नहीं हो सकी हैं।
न तो सुरक्षा तंत्र में किए गए बदलाव जमीनी स्तर पर सभी समुदायों का भरोसा जीतने में कामयाब होते नजर आ रहे हैं, और न ही शांति बहाल करने के लिए राज्यपाल की अध्यक्षता में केंद्र द्वारा गठित बहुपक्षीय समिति सभी पक्षों की आवाज बन पाई है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह मोदी सरकार के सामने आई उत्तर-पूर्व की सबसे बड़ी चुनौती है। अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार के भरोसे या उसको रक्षा-बलों आदि की मदद मुहैया कराने भर से तो हालात संभलते नहीं लग रहे हैं। ऐसे में चूंकि केंद्र सरकार पर अब भी विभिन्न पक्षों का ज्यादा भरोसा है, इसका समय आ गया लगता है कि केंद्र सरकार सीधे आगे आकर हालात को संभाले। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐेसे मामलों में देरी विभिन्न समुदायों तथा इथनिक समूहों के बीच विभाजन की खाई को और चौड़ा तथा पुख्ता करने का ही काम करेगी।
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