तपन से राहत मिलेगी

Last Updated 10 Jun 2023 01:40:17 PM IST

तपते जनजीवन को जिस बौछार का महीनों से इंतजार रहता है, उसका मौसम यानी मॉनसून आ चुका है।


तपन से राहत मिलेगी

भारतीय उपमहाद्वीप में सदा की भांति उसका प्रवेश दक्षिणी राज्यों से होकर होता है। देश के दक्षिणी मुहाने केरल में उसका आगमन बृहस्पतिवार को हो चुका है। इस क्षेत्र में बरसात तभी होती है जब दक्खिनी-पछुआ हवा चलती है, जिससे बादल घने बनते हैं, जिनके पर्वतों-लंबे पेड़ों से टकराने से बारिश होती है। बरसात के मौसम का आगमन भौगोलिक रूप से तय है पर कभी-कभार उसमें हफ्ते-दस दिन की देरी भी हो जाती है। इस बार भी ऐसा ही है। लेकिन इस साल की गर्मी जनजीवन पर भारी पड़ी है।

लोगों की जान, उनकी सेहत पर बन आई है तो खेती-किसानी, ताल-तलैये और पेड़-पौधों को भी भारी कीमत चुकानी पड़ी है। पूरे गर्मी के सीजन में इस बार बारिश देश के उत्तर समेत कई भागों में न के बराबर हुई है। इसने ताममान को अन्य सालों की तुलना में आसमान पर ला दिया है। महीनों से कांटा 40-45 के बीच में ऐसे तना रह रहा है, जैसे यह कोई वसंत की बात हो। लू से सैकड़ों जानें गई तो त्वचा संबंधी कई बीमारियों की तादाद बेतहाशा बढ़ गई। भू-जल का स्तर एक बड़े भूभाग में काफी नीचे चला गया, तालाब के तालाब सूख गए।

निदयां सिमट गई। खरीफ की फसल की तैयारियां पिछड़ गई। मारे गर्मी के फलदार वृक्षों में मंजर आए तो पर बेहाल हो कर झड़ गए, उनमें दाने छोटे-छोटे आए, और वे कम रसीले हो कर रह गए। पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में असामान्य गर्मी और बरसात में देरी या उसके घनत्व के हेर-फेर की एक वजह जलवायु परिवर्तन भी है। इसी वजह से कहीं प्रचंड गर्मी तो कहीं पानी ही पानी होता रहा है। इस लिहाज से पिछला साल ऐसा ही था-जब दोनों अतिवादी घटनाएं देश के अनेक हिस्से में एक साथ घटित हुई थीं।

जलवायु परिवर्तन ने भी अन्य क्रिया-कलाप के साथ दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून पर भी विपरीत असर डाला है। अब बरसात का मौसम एक हफ्ते देरी से शुरू हो रहा है तो उसके साथ बिपरजॉय नामक विनाशकारी चक्रवात भी आ धमका है। इसलिए अगले 24 घंटे बेहद कठिन हैं।

इससे मॉनसून की रफ्तार कम हो सकती है। इसकी वजह से वह देश के अन्य हिस्सों में देर से पहुंच सकता है। इससे अभी कुछ दिन गर्मी से राहत की संभावना नहीं है। राहत की यही बात है कि महीने के अंत तक देश का कोना-कोना बारिश से तरबतर हो जाएगा। सामान्य वष्रा के अनुमान से जीवन-पर्यावरण रसभरा होगा तो खेती-आधारित अर्थव्यवस्था को भी लहलहाना आसान हो जाएगा।



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