पर्यावरण के विनाश में बड़ा योगदान उन्नत औद्योगिक देशों का

Last Updated 07 Jun 2023 01:17:33 PM IST

विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) पर 5 जून को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने उचित ही याद दिलाई है कि पर्यावरण की रक्षा करना बेशक, पूरी मानव जाति की साझा जिम्मेदारी है। लेकिन, वास्तव में पर्यावरण की रक्षा करना तभी संभव है, जब इसी क्रम में पर्यावरण न्याय के तकाजों को पूरा किया जा रहा हो।


पर्यावरण : करो या मरो

विकासशील तथा गरीब देशों की आवाज बनकर भारत काफी पहले से पर्यावरण की चुनौतियों के साथ-साथ पर्यावरण न्याय के लिए आवाज उठाता रहा है। पर्यावरण न्याय का सीधा संबंध इस सचाई से है कि पर्यावरण के विनाश में ऐतिहासिक रूप से बड़ा योगदान उन्नत औद्योगिक देशों का ही रहा है।

विकासशील व आर्थिक रूप से कमजोर देशों को पर्यावरण विनाश से निकली जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का अन्य देशों से बढ़कर ही सामना करना पड़ रहा है। इसलिए पर्यावरण की चुनौतियों का सामना करने के लिए इन देशों पर अगर ऐसे विकल्प थोपे जाते हैं, जो इनके विकास को ही पंगु कर दें तो इन देशों पर भारी तकलीफें लादने के बाद भी इन साझा चुनौतियों को संभालना संभव नहीं होगा।

इसके विपरीत, पर्यावरण की चुनौती में अपने ऐतिहासिक योगदान की प्रतिपूर्ति के रूप में विकसित दुनिया द्वारा कमजोर देशों की संसाधनों तथा प्रौद्योगिकी से मदद किए जाने के जरिए ही सभी सामूहिक रूप से पर्यावरण की चुनौती का सामना करने के रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के विमर्श में इसे ‘साझा लक्ष्य, विभेदीकृत जिम्मेदारी’ के रूप में सूत्रबद्ध किया गया है। लेकिन इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने के बावजूद विकासशील देश किसी न किसी बहाने इस जिम्मेदारी से बचने या टालने की कोशिश करते रहे हैं।

इसी का नतीजा है कि समुचित उपायों के अभाव में बिगड़ावों को अपर्वितनीय और सर्वनाशी होने से रोकने का अवसर तेजी से हाथ से निकलता जा रहा है। विश्व ताप वृद्धि को 1.5 डिग्री पर रोकने का जो लक्ष्य स्वीकार किया गया है, उसके लिए अवसर तेजी से निकला जा रहा है।

इस बीच गर्मी, बारिश, बर्फबारी की बढ़ती अतियों और सागरों के बढ़ते जलस्तर के रूप में जलवायु के कोप का असर दिखने भी लगा है। यह समूची मानवता के सामूहिक प्रयास की जरूरत को और अज्रेट बना देता है। इसलिए यह सवाल भी पूछा ही जाना चाहिए कि क्या भारत भी अपनी ओर से यथासंभव कर रहा है? शायद नहीं। जोशीमठ समेत कई हिमालयी इलाकों में भू-धंसाव इसका सबूत है।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment