ब्रिक्स की दमदारी

Last Updated 05 Jun 2023 01:28:43 PM IST

दक्षिण अफ्रीका (South Africa) के केपटाउन (Captown) में ब्रिक्स (BRICS)(ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों के विदेश मंत्रियों का दो दिवसीय सम्मेलन पिछले शुक्रवार को संपन्न हो गया।


ब्रिक्स की दमदारी

यह सम्मेलन पूर्व की अपेक्षा अधिक चर्चा का विषय बन गया था। इसलिए कि रूस-यूक्रेन (Russia Ukraine war) में जारी जंग के बीच संपन्न हो रहा था, जबकि ब्रिक्स (BRICS)के स्तंभ देश रूस के राष्ट्रपति व्लीदिमीर पुतिन (Russian President Vladimir Putin) पर युद्ध अपराधी होने के आरोप में गिरफ्तारी वारंट जारी है।

हालांकि यह ब्रिक्स सम्मेलन सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों एवं शासन प्रमुखों के अगले छह महीने बाद होने वाले शिखर सम्मेलन की तैयारी की एक पूर्वपीठिका के रूप में हुआ पर इसने अपनी निरंतर संघनित होती आंतरिकता एवं वैश्विक व्यवस्थाओं में नई व्यावहारिकता की आवश्यकता को रेखांकित किया है।

ब्रिक्स का आत्मविश्वास डेढ़ दशक में ही अपनी बढ़ती स्वीकार्यता और तदनुरूप विशाल आकार की संभावनाओं से जाहिर होता है। कोई 19 देशों ने ब्रिक्स के चार्टर को अपने साझा आर्थिक-राजनीतिक विकास के लिए जरूरी माना है। इससे गोल्डमैन सैक्स का यह दावा सही साबित होता है कि 2050 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था पर चार ब्रिक्स इकोनमी का प्रभुत्व होगा।

इस दावे का आधार था कि ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (Brazil, Russia, India, China, South Africa) दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएं हैं। संगठन देशों ने जिस तरह से आबादी, भूक्षेत्र एवं उत्पादन-कारोबार की वैश्विक भागीदारी में अपना अनुपात बढ़ाया है, उसको देखते हुए इसके अर्थशास्त्री ब्रिक्स को समूह-7 की तुलना में व्यापक, तीव्र गति से विकास करने वाला अधिक सक्षम मानते हैं।

हालांकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के दुष्प्रभाव से इसमें भी लड़खड़ाहट आई लेकिन समय के साथ यह संभल गया। अब तो यह तमाम चुनौतियों से निबटते हुए अधिक सक्षम दिख रहा है। वैश्विक आर्थिकी के विकास में विकासशील देशों की उचित हिस्सेदारी की मांग करते हुए संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद में बदलाव के औचित्य को प्रतिपादित कर रहा है।

हालांकि ऐसे मौकों पर बहुत सारे विशेषण गढ़े जाने का भी रिवाज रहा है कि हम दुनिया में समानता एवं सद्भाव के लिए काम करेंगे लेकिन ब्रिक्स आज जहां पर पहुंचा है, वहां से समानता और अधिकार की बातें फिजूल भी नहीं हैं कि दिग्गज देश उसकी अनसुनी कर दें। निस्संदेह इसका श्रेय भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को जाता है।



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