प्रदर्शनकारी पहलवानों के मामले में हस्तक्षेप करे सरकार
उद्घाटन के दिन यानी 28 मई को जंतर मंतर (Jangar Mantar) पर धरना दे रहे पहलवान (Wrestlers protest) अपना विरोध जताने के लिए नये संसद भवन (New Parliament) तक नहीं पहुंच पाए।
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पुलिस बल के चलते उनके समर्थक किसान (farmers) भी दिल्ली की सीमा में प्रवेश नहीं कर पाए। पुलिस ने पहलवानों सहित अनेक प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया और धरना स्थल जंतर मंतर भी खाली करा दिया। इस कार्रवाई से निराश-हताश पहलवानों ने अपने-अपने मैडल गंगा में प्रवाहित करने की घोषणा (wrestlers announced to throw their medals in Ganges) कर दी। ऐसा करने के लिए वे हरिद्वार (Haridwar) में गंगा तट (Ganga Beach) पर पहुंच भी गए, लेकिन भारतीय किसान यूनियन के नेता नरेश टिकैत (Naresh Tikait) के हस्तक्षेप से उन्होंने मैडल विसर्जन का कार्यक्रम तात्कालिक तौर पर स्थगित कर दिया है।
नरेश टिकैत (Naresh Tikait) ने पहलवानों से पांच दिन का समय मांगा है यानी परोक्ष तौर पर उन्होंने सरकार को पांच दिन का समय दिया है कि वह बृजभूषण शरण सिंह (Brijbhushan Sharan Singh) की गिरफ्तारी करे अन्यथा किसी बड़े आंदोलन के लिए तैयार रहे।
दूसरी ओर, पुलिस ने जो रुख अपनाया है, उससे नहीं लगता कि अगले पांच दिनों में बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी हो सकेगी। यह भी स्पष्ट नहीं है कि गिरफ्तारी होगी भी या नहीं। यानी सरकार और पहलवानों के बीच प्रतिरोध की जो स्थिति बनी है, वह टूटती नहीं दिख रही है।
पांच दिन बाद आंदोलनकारी क्या कदम उठाएंगे और उस पर सरकार की क्या प्रतिक्रिया होगी, यह तो आगे ही पता चलेगा। लेकिन जो हो रहा है, वह किसी भी सूरत अच्छा नहीं हो रहा है। इधर, देश के भीतर मोदी सरकार की छवि खराब हो रही है और देश के बाहर भारत की। यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग (United World Wrestling) ने पहलवानों की गिरफ्तारी की निंदा की है। और 45 दिन के अंदर भारतीय कुश्ती महासंघ का चुनाव (Indian Wrestling Federation Election) कराने की चेतावनी दी है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पहलवानों का आंदोलन मोदी विरोधियों का अखाड़ा बन गया है। हर मोदी विरोधी तत्व इस आंदोलन के जरिए अपनी रणनीति को आगे बढ़ाता दिख रहा है, लेकिन मात्र इस बहाने से कि पहलवानों का आंदोलन मोदी विरोधियों द्वारा प्रेरित है, सरकार अपने दायित्व से नहीं बच सकती।
28 मई को जिस तरह पहलवानों के साथ बल प्रयोग किया गया उससे सामान्य लोगों की नैतिक चेतना पहलवानों के साथ है, और सरकार के रवैये से जनसामान्य बेहद आहत है। इसलिए समय रहते इस समूची परिस्थिति का संज्ञान लिया जाना चाहिए और इससे पहले कि सरकार की छवि को ध्वस्त करने वाली कोई बड़ी घटना घटे, इस स्थिति का समुचित समाधान निकाला जाना चाहिए।
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