ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी
पिछले तीन साल के दौरान करीब 39 प्रतिशत भारतीय परिवार किसी न किसी ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी (online financial fraud) का शिकार हुए और इनमें से 24 प्रतिशत को ही उनका पैसा वापस मिल पाया।
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यह सनसनीखेज खुलासा लोकल सर्किल्स की मंगलवार को जारी रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, सव्रे में 23 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे क्रेडिट या डेबिट कार्ड से की गई धोखाधड़ी का शिकार बने। तेरह प्रतिशत का कहना था कि उन्हें खरीद, बिक्री और वर्गीकृत वेबसाइट उपयोगकर्ताओं द्वारा धोखा दिया गया। सव्रे में देश के 331 जिलों के 32 हजार लोगों की राय ली गई। इनमें 66 प्रतिशत पुरुष और 34 प्रतिशत महिलाएं थीं।
ऑनलाइन भुगतान और डिटिजलीकरण के माध्यमों के उपयोग से जीवन में सहूलियत बढ़ी है, लेकिन इसी के साथ लोगों के साथ बैंक खाता धोखाधड़ी और अन्य तरीकों से चूना लगाने के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। ऐसे अपराधों को काबू में रखने के लिए साइबर थाने खोले गए हैं, और पुलिस स्टाफ को भी साइबर अपराधों से पार पाने में सक्षम बनाने की गरज से प्रशिक्षित किया जा रहा है। लेकिन हालत ये है कि इस प्रकार के अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। बेशक, इन्हें रोकने के लिए पुलिस और अन्य एजेंसियों खासी सतर्क रहती हैं। लेकिन मात्र इतने भर से ही बात नहीं बनेगी। लोगों को भी सतर्क और जागरूक होना पड़ेगा। जरूरी है कि लोग अपने तई एहतियात बरतें।
लेन देन डिटिजल किए जाने पर एक प्रकार की सहूलियत का अहसास होता है, लेकिन इस दौरान जरा भी लापरवाह हुए नहीं कि साइबर अपराधी अपना काम कर जाते हैं। एटीएम पर धोखाधड़ी के मामले आये दिन सुनने में आते हैं। बीते 9 साल में भारत में डिटिजल कायाकल्प हुआ है, इस दौरान देश में स्मार्टफोन, यूपीआई या आधार-आधारित लेन देन का बड़े स्तर पर चलन बढ़ा है। लेकिन इसी के साथ साइबर सुरक्षा और साइबर अपराध की चुनौतियां भी देश के सामने तेजी से उभरी हैं।
इस मामले में भारत के लिए यह निराशाजनक खबर है कि मैसाच्यूस्ट्स इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोल्ॉजी ने ऑनलाइन और साइबर ठगी का सर्वाधिक निशाना बन सकने वाले 20 देशों की जो सूची बनाई है, भारत उसमें 17वें स्थान पर है। यकीनन इसी से जाहिर हो जाता है कि हमें साइबर सुरक्षा और साइबर अपराधों को रोकने के लिए खासे प्रयास करने होंगे। निवेश करना होगा।
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