शर्मीलेपन को समझें
बच्चों में शर्मीलापन आम है। फिर भी कुछ पालक अपने बच्चों के शर्माने को लेकर बेहद चिंतित रहते हैं। ताजा अध्ययन बता रहे हैं, शर्मीलापन सामान्य भावना है। यह व्यक्तित्व का हिस्सा है।
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खासकर जब बच्चे अजनबियों के सामने असहज महसूसते हैं। शर्मीलापन जन्मजात गुण है। कनाडा के ब्राक विविद्यालय ने बच्चों के शर्मीलेपन पर अध्ययन किया, जिसमें सात आठ साल के 152 बच्चों को शामिल किया। इन बच्चों को भाषण देने को बोला गया, जिसे फिल्माया जा रहा था। बच्चे सचेत हो गए। शोधकर्ताओं ने बच्चों की घबराहट इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम से मापी। अध्ययन में शामिल दस फीसद बच्चों में उच्च तनाव दिखा। उनके शर्मीलेपन का स्तर और भी अधिक था।
बताया गया पच्चीस फीसद पालकों को अपने बच्चे के शर्मीलेपन की भनक भी नहीं थी, जबकि उनमें उच्च स्तर का सामाजिक तनाव स्पष्ट नजर आया। विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि सभी शर्मीले बच्चे एक जैसे नहीं होते। वयस्क होने पर कुछ का व्यक्तित्व खुलकर सामने आ जाता है। यह व्यवहारगत समस्या मानी जाती है, लेकिन बच्चों के विकास में इसका असर नजर आता है। कहा जाता है जब तक बच्चा घबराहट के कारण सामाजिक या सार्वजनिक जगहों पर असहज नहीं होता, तब तक ज्यादा फिक्र नहीं करनी चाहिए।
अपने बच्चों को लेकर अब मां-बाप काफी सतर्क होते जा रहे हैं। बच्चा उद्दंड या शरारती ना हो पर वह अजनबियों, घर आए मेहमानों व स्कूल में शर्माए ना; ऐसा सभी पालक चाहते हैं। अब नर्सरी स्कूलों में भी नन्हें बच्चों का बाकायदा साक्षात्कार लिया जाता है। बच्चों का अधिक शर्मीलापन ऐसे में बाधक बन सकता है। पालकों को चाहिए, वे बच्चे की हौसलाफजाई करते रहें। यह उनका स्वभाव है, यह ध्यान रख कर उन्हें समझाएं। उनमें भरोसा जगाएं कि परिवार के वयस्क हमेशा उनके साथ हैं।
कुछ बच्चे सार्वजनिक जगहों में घुलते-मिलते नहीं, अपने में गुम से रहते हैं। उनके पालकों को सामान्य महसूस कराने का प्रयास करना चाहिए। बच्चों में शर्मीलेपन के लक्षण तीन-चार बर्ष की उम्र के साथ ही नजर आने लगते हैं। इसलिए परिवार को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। यही बच्चे वयस्क होने पर अंर्तमुखी हो सकते हैं। जिसका उनके व्यक्तित्व व विकास पर खासा असर होता है।
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