संयम के साथ कड़ाई
पंजाब के अजनाला में बृहस्पतिवार को जो हुआ उसमें भविष्य के लिए बहुत अशुभ संकेत निहित है।
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जरनैल सिंह भिंडरावाले को अपना आदर्श मानने वाले खालिस्तान समर्थक संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने तलवार और बंदूकों के साथ मारपीट और अपहरण मामले में गिरफ्तार तूफान सिंह की रिहाई के लिए अजनाला पुलिस थाने पर हमला बोल दिया। हिंसक भीड़ ने बैरिकेडिंग तोड़ दिया और कई पुलिस वालों को घायल कर दिया। इतना ही नहीं पुलिस पर दबाव बनाया और तूफान की रिहाई के आदेश प्राप्त कर लिये।
अमृतपाल के अनुसार उसके साथी को अकारण गिरफ्तार किया गया था। इस प्रकरण की सर्वाधिक चिंतनीय स्थिति यह थी कि पुलिस असहाय बनी रही। और अमृतपाल की गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी के बावजूद उसके विरुद्ध किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई। अब इस कांड पर राजनीति भी शुरू हो गई है। इसे पंजाब में कानून-व्यवस्था के गहराते संकट के तौर पर भी बताया जा रहा है और भविष्य में खालिस्तानी हिंसा के दौर की वापसी की आशंका के तौर पर भी देखा जा रहा है।
यह घटना निर्विवाद तौर पर खालिस्तानी तत्वों के फिर से मैदान में आ जाने का प्रमाण है। बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि अगर इसे तत्काल नियंत्रित नहीं किया गया तो न केवल पंजाब सरकार बल्कि केंद्र सरकार के लिए भी गहरा संकट खड़ा हो जाएगा। इसलिए केंद्रीय स्वर यह है कि अमृतपाल और उनके समर्थकों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए, उन्हें जेल में डाला जाए। लेकिन यह किसी भी सरकार के लिए बहुत आसान नहीं है। खालिस्तानी हिंसा का पिछला दौर इसे दिखा चुका है।
एक टीवी साक्षात्कार में अमृतपाल ने कहा कि वह खालिस्तानी आंदोलन के रिवाइवल के लिए नहीं बल्कि पंजाब के लोगों के सर्वाइवल के लिए लड़ रहा है। वह चाहता है कि जिस तरह हिंदू राष्ट्र, समाजवाद, लोकतंत्र, तानाशाही जैसे मुद्दों पर बहस हो सकती है तो खालिस्तान के मुद्दों पर भी बहस हो।
इससे पहले कि पंजाब में बेलगाम हिंसा का दौर शुरू हो अमृतपाल सिंह और उसके समर्थकों को वार्ता की मेज पर लाया जाना चाहिए और भारत स्वयं तथा पंजाब के लिए खालिस्तानी अवधारणा कितनी विनाशक हो सकती है, उन्हें समझाया जाना चाहिए। पहल अगर पंजाब के प्रबुद्ध और प्रभावशाली सिखों की ओर से हो तो अधिक फलदायी होगा।
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