‘अनुशासनहीन’ दिल्ली
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली ऐसा शहर है, जहां अनुशासनहीनता सबसे अधिक है।
![]() ‘अनुशासनहीन’ दिल्ली |
ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (एआईएमए) के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मंगलवार को नारायण मूर्ति ने कहा कि दिल्ली में यातायात नियमों का उल्लंघन बहुत ज्यादा होता है, और दिल्ली आना उन्हें सुविधाजनक नहीं लगता। नारायण मूर्ति ने कहा कि जनता को सामुदायिक संपत्ति का उपयोग निजी संपत्ति से भी बेहतर ढंग से करना चाहिए। ऐसा करके ही सार्वजनिक शासन में झूठ, फरेब से बचा जा सकेगा।
उन्होंने हवाई अड्डे से शहर में पहुंचते समय रेड लाइट पर पेश आए नजारे का जिक्र किया कि किस प्रकार लाल बत्ती पर सारी कारें, बाइक और स्कूटर बिना कोई परवाह किए यातायात नियम का उल्लंघन कर रहे थे। एक-दो मिनट का इंतजार किए बगैर हर कोई आगे बढ़ने के लिए बेसब्री दिखा रहा था। नारायण मूर्ति ने इस शहर में अपने अनुभव ईमानदारी से साझा किए हैं। बाहर से आने वाले व्यक्ति से शहर की इस प्रकार की कुरूपता छिपी नहीं रहती क्योंकि शहर वाले तो इस सब अफरातफरी के अभ्यस्त हो चुके हैं। उनके लिए आये दिन सड़कों पर दिखने वाला नजारा कोई नई बात नहीं होती। लेकिन बाहर से आए व्यक्ति के लिए अखरने वाला नजारा होता है।
शहरवासियों में सिविक सेंस होना जरूरी है। लेकिन दिल्ली के मामले में देखें तो यहां नागरिक भाव का अभाव है। वो भी तब जब शहर में पढ़े-लिखे लोगों की बहुसंख्या है। उनमें सिविक सेंस होना चाहिए लेकिन नहीं है तो इसलिए कि कड़ी प्रतिस्पर्धा शहरी जीवन का अंग बन चुकी है।
आपाधापी से कोई भी शख्स बचा नहीं रह गया। भागदौड़ की असामान्य सी मन:स्थिति आम नागरिक के व्यवहार में हमें देखने को मिलती है। नारायण मूर्ति को सड़क शहर का एक पक्ष ही दिखा लेकिन देख सकते हैं कि शहरवासी शहर को साफ-सुथरा और हरा-भरा बनाए रखने के अपने बुनियादी नागरिक कर्त्तव्य से भी किस कदर बेरपरवाह हैं। बुनियादी नागरिक सुविधाओं के इस्तेमाल में गजब की लापरवाही दिखती है।
लगता ही नहीं कि राजधानी शहर के लोग इस कदर चीजों को बिगाड़ने में शामिल हो सकते हैं। जरूरी है कि सिविक सेंस के प्रति जागरूकता के प्रयास लगातार किए जाते रहें। जरूरी यह भी है कि सामान्य नियमों का कड़ाई से अनुपालन कराया जाए तभी सलीकों की सीख पुख्ता हो सकेगी।
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