यूक्रेन यात्रा का मकसद

Last Updated 22 Feb 2023 01:53:34 PM IST

रूस और यूक्रेन के युद्ध का एक साल पूरा होने से चार दिन पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की अघोषित कीव (यूक्रेन) यात्रा को एकजुटता प्रदर्शित करने के तौर पर देखा जा रहा है।


यूक्रेन यात्रा का मकसद

बाइडेन की इस यात्रा से यूक्रेन के राष्ट्रपति बोलोदिमीर जेलेंस्की और उनके सैनिकों का मनोबल अवश्य बढ़ा होगा। युद्ध के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति की यह यात्रा हैरान करने वाली थी। संभवत: बाइडेन अकेले ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने ऐसे युद्ध क्षेत्र का दौरा किया, जिसमें अमेरिकी सेना प्रत्यक्ष तौर पर शामिल नहीं हैं। पिछले कुछ महीनों से यूक्रेन और अन्य कुछ देशों में धारणा बन रही थी कि अमेरिका और उसके सहयोगी पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति और आर्थिक मदद पहुंचाने की प्रक्रिया शिथिल पड़ती जा रही है।

संभावना है कि इस धारणा को खंडित करने के लिए बाइडेन ने यूक्रेन की जोखिम भरी यात्रा करने का निश्चय किया। बाइडेन ने यूक्रेन को 50 करोड़ डॉलर की अतिरिक्त मदद करने की घोषणा भी की। बाइडेन ने कीव में जेलेंस्की के साथ मिलकर प्रेस को संबोधित किया और कहा कि यूक्रेन पर रूसी हमले का एक वर्ष पूरा होने वाला है। मैं भरोसा दिलाता हूं कि यूक्रेन की लोकतंत्र की रक्षा के लिए अमेरिका अटूट और बिना शर्त समर्थन जारी रखेगा। जब रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन पिछले वर्ष यूक्रेन पर हमला किया था तो लगा था कि यूक्रेन कमजोर है और पश्चिम बंटा हुआ है। लेकिन एक साल बाद तीव्र दृढ़ता से खड़ा है, लोकतंत्र खड़ा है। अमेरिकी आपके साथ खड़े हैं और दुनिया आपके साथ खड़ी है।

जाहिर है कि पुतिन पर बाइडेन की इस यात्रा की तीखी प्रतिक्रिया होनी थी और ऐसा हुआ भी। उन्होंने रूस की संसद को संबोधित करते हुए अपने देश के लोगों की सुरक्षा को अहम बताया, उन्होंने यह भी कहा हमने शांति की स्थापना के लिए पूरी कोशिश की, लेकिन पश्चिमी देशों ने शांति कायम नहीं होने दी। रूस के सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि बाइडेन की कीव यात्रा ने यह प्रमाणित कर दिया कि अमेरिका यूक्रेन में मास्को के विरुद्ध छद्म युद्ध लड़ रहा है। पुतिन ने भी कई बार कहा है कि हम नाटो के विरुद्ध लड़ रहे हैं। सभी जानते हैं कि राष्ट्रपति पुतिन हार कभी स्वीकार नहीं करेंगे। बेहतर होगा कि अमेरिका और पश्चिमी देश जितना जल्दी यह समझ लें कि विश्व तेजी से बदल रहा है और उनकी वर्चस्व वाली विश्व व्यवस्था का रंग मलिन हो चुका है।

 



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