जनता को राहत
उत्तराखंड के हल्द्वानी स्थित बनभूलपुरा में रेलवे के दावे वाली 29 एकड़ भूमि पर अरसे से बसे 50,000 लोगों को बुलडोजर से राहत मिल गई है।
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इस भूमि से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर सर्वोच्च अदालत ने बृहस्पतिवार को रोक लगा दी। इससे सर्दी के मौसम में अपना आशियाना ढहाये जाने की आशंका में परेशान हो रहे लोगों को सुकून मिला है। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को मानवीय मुद्दा माना और कहा कि 50,000 लोगों को रातोंरात हटाना संभव नहीं है। इस भूमि पर बसे लोगों का दावा है कि उनके पास भूमि का मालिकाना हक है।
रेलवे का दावा है कि ये सारी आबादी उसकी भूमि पर कब्जा करके बसाई गई है। इस विवादित भूमि पर 4,365 परिवारों के पचास हजार से अधिक लोग निवास करते हैं। इनमें से अधिकांश मुस्लिम हैं। शीर्ष अदालत की पीठ ने यह भी कहा कि इस विवाद का व्यावहारिक समाधान निकाला जाना चाहिए। उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर राज्य सरकार और रेलवे से जवाब मांगा गया है। फिलहाल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक रहेगी। सर्वोच्च अदालत ने मामले में मानवीय रुख को प्रमुखता देते हुए उन लोगों के लिए भी अलग से व्यावहारिक व्यवस्था किए जाने की बात मानी जिनके पास भूमि का कोई अधिकार नहीं है।
रेलवे की जरूरत है तो पुनर्वास योजना भी जरूरी है। क्योंकि लोग यहां 50, 60 और 70 वष्रे से रह रहे हैं। उच्च न्यायालय ने 20 दिसम्बर को अतिक्रमित रेलवे भूमि पर सभी निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। निर्देश दिया गया था कि अतिक्रमण करने वालों को एक सप्ताह का नोटिस दिया जाए। पीठ ने सरकारी नीलामी में जमीन खरीदे जाने और स्वत्वाधिकार हासिल करने का भी जिक्र किया।
पीठ ने कहा कि किसी-न-किसी को दावाकर्ताओं की बात सुननी होगी और सही-गलत के फैसले के लिए उनके दस्तावेजों की पड़ताल करनी होगी। निवासियों का दावा है कि 1947 में विभाजन के दौरान भारत छोड़ने वालों के घर सरकार द्वारा नीलाम किए गए और उनके द्वारा खरीदे गए। वे तभी से हाउस टैक्स भर रहे हैं। उत्तराखंड सरकार को भी इस बेहद संवेदनशील मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनना चाहिए।
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