न्यायाधीश और सरकार
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश कह रहे हैं, इसलिए इतना तो निश्चित है कि बात मामूली नहीं है और इसे आम बयान की तरह चलते-फिरते कही गई बात कहकर छोड़ा नहीं जा सकता।
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प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमण ने शुक्रवार को कहा कि सरकारों द्वारा न्यायाधीशों को बदनाम करने का नया चलन शुरू हो गया है। इस बात पर गहन मंथन जरूरी है ताकि इस प्रकार की प्रवृत्तियों पर रोक के ठोस उपाय किए जा सकें। जस्टिस रमण इसे महसूस कर रहे हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ दो विशेष याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका शामिल थी, जिसमें राज्य के पूर्व प्रधान सचिव अमन कुमार सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज प्राथमिकी को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि आरोप प्रथम दृष्टया संभावनाओं पर आधारित थे। दूसरी याचिका उचित शर्मा ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर की थी।
एक याचिकाकर्ता के वकील सिद्धार्थ दवे ने पीठ के समक्ष तर्क दिया कि प्राथमिकी इसलिए रद्द की गई कि आरोप संभावना पर आधारित था। इस पर प्रधान न्यायाधीश की टिप्पणी थी, ‘अदालतों को बदनाम करने की कोशिश मत करो। इस मामले में भी ऐसा देखा जा रहा है।’ छत्तीसगढ़ सरकार के अधिवक्ता राकेश द्विवेदी का तर्क था कि वे उस बिंदु पर बिल्कुल भी दबाव नहीं डाल रहे हैं।
इस पर प्रधान न्यायाधीश रमण की टिप्पणी थी, ‘नहीं, हम हर दिन देख रहे हैं।’ ‘यह नया चलन है, सरकारों ने न्यायाधीशों को बदनाम करना शुरू कर दिया है।’ अनुमानों और लगाए गए आरोपों के आधार पर इस तरह के उत्पीड़न की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस पर दवे ने कहा कि यह कोई अनुमान नहीं है, और किसी ने 2,500 करोड़ रुपये जमा किए हैं, जो चौंकाने वाला है, पीठ ने कहा कि विशेष अनुमति याचिका अतिशयोक्तिथी।
‘अक्सर देखा गया है कि कई निजी पक्षकारों की तरह सरकारें भी अब न्यायाधीशों की छवि धूमिल करने की कोशिश करती हैं। न्यायपालिका और कार्यपालिका व्यवस्था के दो प्रमुख बिंदु हैं। इनमें एक दूसरे का सम्मान जरूरी है। मुख्य न्यायाधीश की बात पर अविलंब मंथन जरूरी है।
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