राहत है या आफत!
कर्ज की छोटी सी मात्रा भी छोटे काम धंधों को चलाने में सहायक हो सकती है।
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बहुत बार छोटे आय वर्ग वाले आम लोगों को भी अपने जरूरी काम निपटाने के लिए कर्ज लेना जरूरी हो जाता है। जो इन जरूरतमंदों की ऋण की जरूरतें पूरी करते हैं उन्हें अब साहूकार की जगह सूक्ष्म वित्त ऋणदाता कहा जाता है। इन संस्थानों के जरिए दिए गए ऋणों की ब्याज दरें पहले सरकार तय करती थी। लेकिन अब भारतीय रिजर्व बैंक ने सूक्ष्म-वित्त ऋणदाता संस्थानों को ऋण की ब्याज दरें तय करने की अनुमति दे दी है, लेकिन साथ ही चेताया है कि दरें बहुत ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
एक सूक्ष्म-वित्त ऋण का आशय तीन लाख रुपये तक की सालाना आय वाले परिवार को दिए जाने वाले गारंटी-मुक्त कर्ज से है। इसके लिए सभी नियमित इकाइयों के निदेशक-मंडल को एक नीति के जरिए सूक्ष्म-वित्त ऋण की कीमत, कवर, ब्याज दरों की अधिकतम सीमा और सभी अन्य शुल्कों के बारे में स्पष्टता लानी होगी।। पहले आरबीआई खुद ही तिमाही आधार पर ब्याज दरों की घोषणा किया करता था। लेकिन अब ब्याज दर तय करने का अधिकार सूक्ष्म-वित्त संस्थानों को ही सौंप दिया गया है।
कर्जदार अगर अपने कर्ज को समय से पहले चुकाना चाहता है, तो उस पर कोई जुर्माना नहीं लगाया जाए। किस्त के भुगतान में देरी पर संस्थान ग्राहक पर जुर्माना लगा सकते हैं लेकिन सिर्फ बकाया राशि पर, समूची कर्ज राशि पर नहीं। रिजर्व बैंक का कहना है कि कर्ज संबंधी दस्तावेज कर्ज ले रहे व्यक्ति को समझ में आने वाली भाषा में तैयार किया जाएगा। पहले गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) अपनी कुल परिसंपत्ति के 10 फीसदी से अधिक सूक्ष्म-वित्त कर्ज नहीं दे सकती थीं।
लेकिन अब इसकी अधिकतम सीमा को बढ़ाकर 25 फीसद कर दिया गया है। आरबीआई के नए निर्देशों स्वागत योग्य हैं इससे न केवल ऋण कारोबार में समान अवसर मिलेंगे बल्कि ऋणदाता के कर्ज में डूबने की और ज्यादा कर्ज देने की समस्या से निपटने में भी मदद मिलेगी। सारा मामला आरबीआई की सख्त निगरानी की मांग करता है क्योंकि खुद ब्याज के निर्धारण की मंजूरी ऋणदाता को निर्दयी भी बना सकती है। कोविड काल गवाह है जब बेहद कम कर्ज लेने पर मजबूर अनेक लोगों को वसूलीबाजों को उत्पीड़न से आजिज आकर आत्महत्या तक करनी पड़ी था।
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