भारतीय हितों की चिंता
रूस और उसके पड़ोसी मुल्क यूक्रेन के बीच तनाव कम होने की बजाय तेज ही होता जा रहा है, जो न केवल यूरोपीय देशों बल्कि भारत के लिए भी चिंता का सबब है।
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संकट बढ़ने की आशंका अमेरिका की तरफ से भी आई है। अमेरिका ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि रूस यूक्रेन पर किसी भी वक्त हमला कर सकता है। हालांकि रूस ने अमेरिका के इस बड़बोलेपन को यह कहकर ठंडा कर दिया कि वह अभी यूक्रेन पर हमला करने के मामले में कुछ दिन और इंतजार करेगा। इस बीच रूस से बातचीत के लिए जर्मनी के चांसलर ओलफ शुल्ज मास्को आ रहे हैं। वहीं रूस के विदेश मंत्री सग्रेई लावरोव ने राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से अमेरिका से वार्ता करने का अनुरोध किया है।
इस बीच नाटो के सदस्य देश अपने सैनिकों को रूस की सीमा पर तैनात कर रहे हैं। वहीं यूक्रेन की सीमा के नजदीक रूस की सेनाएं भी लगातार युद्धाभ्यास कर रही हैं। यानी इलाके में तनाव है भी और उसे खत्म करने की कवायद भी जारी है। अलबत्ता रूस-यूक्रेन तनाव का असर भारत पर भी दिखने लगा है। सोमवार को भारतीय शेयर बाजार में साल की सबसे बड़ी गिरावट देखी गई। यहां निवेशकों के 8.47 लाख करोड़ रुपये डूब गए। विदेशी निवेशकों की लगातार निकासी व डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट से बाजार की धारणा पर असर पड़ा है। एक आशंका यह भी जताई जा रही है कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो भारत के लिए दुारियां और ज्यादा बढ़ जाएंगी।
ज्ञात है कि भारत यूक्रेन को दवा और इलेक्ट्रिकल मशीनरी आदि बेचता है तो दूसरी ओर खाने के तेल से लेकर खाद और न्यूक्लियर रिएक्टर जैसी जरूरी चीजें खरीदता है। जंग शुरू होने पर यह आपसी व्यापार रु क सकता है, जिससे भारत की परेशानियां बढ़ सकती हैं।
अलबत्ता, यह परेशानी उन देशों को भी अपने लपेटे में ले सकती है जिनका व्यापार रूस के साथ बड़े पैमाने पर होता है। इस बीच यूक्रेन में 20 हजार से ज्यादा की संख्या में फंसे भारतीय छात्रों के बारे में भी मोदी सरकार को सोचना होगा। एक तरफ बाजार को इस ‘चोट’ से बचाने की जिम्मेदारी है तो दूसरी तरफ वहां फंसे भारतीय को सुरक्षित वापस लाने की चुनौती भी दरपेश है। देखना है, केंद्र सरकार इस संवेदनशील मसले को किस चतुराई से निपटाती है?
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