आर्थिक तंगी और आत्महत्या

Last Updated 11 Feb 2022 01:47:13 AM IST

बेरोजगारी और आर्थिक तंगी किसी एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार को अनेक सामाजिक दबावों और बेहद कष्टपूर्ण परिस्थितियों में जीवन जीने पर मजबूर कर देती है।


आर्थिक तंगी और आत्महत्या

बहुत से लोग इस दबाव को सह नहीं पाते और टूट जाते हैं। पिछले तीन सालों में 25000 लोग विपरीत परिस्थितियों का सामना नहीं कर पाए और जीवन समाप्त कर बैठे। यह तथ्य सरकार की ओर से संसद में दिए जवाब में सामने आया है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2020 में बेरोजगारी के कारण 3,548 लोगों ने आत्महत्या की।

सरकार ने संसद को बताया कि 2018 से 2020 के बीच 16,000 से अधिक लोगों ने दिवालिया होने या कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या कर ली, जबकि इसी अवधि में बेरोजगारी के कारण 9,140 लोगों ने अपनी जान ले ली। गृह राज्य मंत्री ने बताया कि 2020 में 3548 लोगों ने, जबकि 2019 में 2851 लोगों ने बेरोजगारी के चलते खुदकुशी की। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2020 में कर्नाटक में सबसे अधिक720 बेरोजगारों ने आत्महत्याएं कीं। इसके बाद महाराष्ट्र में 625, तमिलनाडु में 336, असम में 234, और उत्तर प्रदेश में 227 बेरोजगारों ने जान दे दी। साल 2020 में दिवालियापन या कर्ज नहीं चुका पाने के कारण आत्महत्याओं में महाराष्ट्र पहले स्थान पर रहा।

महाराष्ट्र में  2020 में 1,341 आत्महत्याएं हुई। इसके बाद कर्नाटक में 1,025, तेलंगाना में 947, आंध्र प्रदेश में 782 और तमिलनाडु में 524 लोगों ने जान दी। भारत में कोरोना महामारी के बाद से ही बेरोजगारी चरम पर है। छोटे कारोबारी बहुत ज्यादा परेशान हैं। दिसम्बर में 5.2 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार थे। इनमें वे लोग शामिल नहीं हैं, जिन्होंने निराश होकर नौकरियां खोजना ही छोड़ दिया है। सरकार इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकती।

जिन मुद्दों पर उसे जनता ने अपार बहुमत दिंया है; उनमें रोजगार का वादा प्रमुख था। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने बजट में रोजगार पैदा करने का कोई खाका तैयार नहीं किया है। इसके जवाब में सरकार यही रटा-रटाया तर्क देती है कि रोजगार सृजन के लिए अनेक कार्यक्रम चल रहे हैं। किसी भी देश के लिए जनता के यह हालात ठीक नहीं हैं। सरकार को जल्द-से-जल्द गंभीर प्रयास करने होंगे।



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