फरलो का सियासी गणित
पंजाब में चुनाव से 13 दिन पहले डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को 21 दिन का फरलो मिलना सामान्य निर्णय नहीं कहा जा सकता है।
![]() फरलो का सियासी गणित |
दुष्कर्म और हत्या का दोषी राम रहीम 20 साल की सजा काट रहा है और रोहतक की सुनारिया जेल में बंद है। इससे पहले डेरा प्रमुख को तीन बार-कभी इलाज के संबंध में तो एक बार अपनी मां से मिलने-पैरोल मिला था। मगर इस बार तीन हफ्ते का फरलो मिलना हर किसी के लिए विस्मय भरा है।
ज्ञातव्य है कि डेरा प्रमुख की पकड़ पंजाब के मालवा क्षेत्र में काफी मजबूत है। कांग्रेस की तरफ से दलित चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए जाने के दूसरे दिन ही हरियाणा जेल प्रशासन ने उसे फलरे पर बाहर आने की मंजूरी दे दी। विशेष तथ्य यह है कि पूरे देश में सबसे ज्यादा दलित मतदाता पंजाब में (32 फीसद) हैं और यह भी खास है कि सूबे की दलित राजनीति में डेरा का दखल किस कदर प्रभावकारी है। यहां के मालवा क्षेत्र के अलावा राज्य कीकई सीटों पर डेरा समर्थकों का वोट निर्णायक है। मालवा में विधानसभा की 69 सीटें हैं।
कुल 117 विधानसभा सीटों में से अगर 47 सीटों पर बाबा के अनुयायी मतदान करेंगे तो स्वाभाविक तौर पर नतीजे भी उसी स्वरूप में आएंगे। यही वजह है कि डेरा प्रमुख को ऐन चुनाव से पहले बाहर किया गया है। पूर्व में भी डेरा समर्थकों ने भाजपा-अकाली दल के पक्ष में वोट किया है। हालांकि हरियाणा सरकार के मुखिया मनोहरलाल खट्टर ने ऐसे किसी आरोप से इनकार किया कि पंजाब चुनाव के कारण राम रहीम को फरलो दी गई है। मगर ये बस कहने भर की बात है।
पंजाब और हरियाणा की सियासत पर राम रहीम का कितना प्रभाव है, यह जगजाहिर है। वैसे, डेरा की कृपा सिर्फ भाजपा-अकाली दल को ही नहीं मिली है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी बाबा की कृपा नसीब हुई है। दूसरी ओर राम रहीम को फरलो दिए जाने से पीड़ित परिवारों में भारी नाराजगी है और इसे हाईकोर्ट में चुनौती भी दी जाएगी। देखना है, अदालत का इस मामले पर क्या रुख रहता है? मगर इतना तो तय है कि पंजाब का चुनाव दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। डेरे की सियासी ताकत से हर राजनीतिक दल वाकिफ है। लिहाजा उसे अपने तरीके से फायदेमंद बनाने की तरकीब भी सोची जा रही है।
Tweet![]() |