दांव से दावेदारी
पंजाब में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर जो कयासबाजी चल रही थी, उस पर रविवार को विराम लग गया।
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कांग्रेस नेता और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने चरणजीत सिंह चन्नी को पार्टी का मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया। हालांकि चन्नी के अलावा किसी और चेहरे पर दांव लगाने की अटकलबाजी तो नहीं थी, मगर नवजोत सिंह सिद्धू की कुछ दिनों से की जा रही बयानबाजी से आलाकमान भी एक बार को संशय में पड़ गया था। दरअसल, कांग्रेस में इस बात को लेकर गहन मंथन हुआ कि 18 फीसद जट्ट सिख वोटों की तुलना में करीब 32 फीसद दलित वोटों को एकजुटता का संदेश देना ज्यादा लाभप्रद होगा।
और हुआ भी यही। हालांकि राज्य की सत्ता में लंबे वक्त तक रही शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन ने भी कांग्रेस को यह फैसला लेने के लिए मजबूर किया। वैसे सिर्फ दलित होने की वजह से चन्नी की दावेदारी को मजबूती नहीं मिली। इससे इतर चन्नी का अपने 111 दिन के कार्यकाल में राज्य की जनता से बेहतर संवाद, प्रधानमंत्री की सुरक्षा मामले में खुद को मजबूत तरीके से प्रस्तुत करना और सिद्धू के लगातार उकसाने वाले बयान पर कोई भी जवाब नहीं देना; चन्नी के फेवर में गया। निश्चित तौर पर कांग्रेस के इस दांव से तमाम विपक्षी पार्टियां बैकफुट पर आ गई हैं। साथ ही दूसरे राज्यों के चुनाव पर भी इस फैसले का कांग्रेस के पक्ष में हवा बनेगी। निश्चित तौर पर यह आलाकमान का चतुराई भरा निर्णय है।
राहुल ने इसके साथ ही सुनील जाखड़ को ‘हीरा’ बताकर हिंदू वोटबैंक को भी साधने की सफल कोशिश की है। अगर कांग्रेस पंजाब में सत्ता में वापसी कर लेती है तो वह अपने इस ‘फामरूला’ को आने वाले अन्य राज्यों के चुनाव में आजमाने का प्रयास करेगी। दोआबा और मालवा इलाकों में सुनने में आया कि यहां के विधानसभा क्षेत्रों में चन्नी को लेकर ‘साफ्ट कॉर्नर’ है। दोआबा इलाके में जहां वोटरों की पहली पसंद बसपा थी, वहां के लोगों में अब चन्नी के प्रति झुकाव देखा जा रहा है।
उसी तरह पंजाब में डेरों का अपना एक महत्त्व है। खासकर बल्लान डेरा जहां रविदासिया समुदाय की बहुतायत है, वहां चन्नी ज्यादा समय दे रहे हैं। देखा जाए तो आम आदमी पार्टी वहां मजबूत स्थिति में है और चन्नी फैक्टर ने सभी दलों का गणित बिगाड़ दिया है। यहां का चुनाव ज्यादा दिलचस्प होने जा रहा है।
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