एक युग का अवसान
भारतीय संगीत जगत में लोकप्रियता के स्तर पर सुर की सरस्वती लता मंगेशकर जैसा दूसरा नहीं हुआ।
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उनका जाना निश्चित तौर पर संगीत जगत के लिए बड़ी क्षति है। उनकी सुरीली और मखमली आवाज में जो कशिश और रुहानियत थी, वह सुनने वालों के दिलों को गहराई से छूती थी। उनके गायन का दैदीप्यमान सूर्य अनहद के पार चमकता रहा। अस्सी साल तक संगीत के आसमान में ध्रुव तारे के समान चमकती रहीं अनूठी गायिका को पूरी सदी का महानायक कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
रविवार सुबह आठ बजकर 10 मिनट पर मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में विस्मय विमुग्ध करने वाली लता की आवाज लुप्त हो गई। इस अमर गायिका के कंठ में माधुर्य भर देने की जो कला थी, वह सुनने वालों को बार-बार मुग्ध करती थी। फिल्मी दुनिया में पाश्र्व गायिका के रूप में आठ दशक राज करने वाली लता जी ने अनगिनत गानों को अलग-अलग स्वाद में गाया। वे शास्रीय सुगम संगीत, गजल, भजन आदि गाने पर समान अधिकार रखती थीं। सुर की मलिका लता जी के बारे में शास्रीय गायन की महान हस्ती उस्ताद बड़े गुलाम अली ने कहा था, ‘यह कम्बख्त कभी बेसुरी नहीं होती।’ लता जी का संगीत में सफर बहुत ही संघषर्पूर्ण और रोमांचक रहा।
इंदौर में जन्मीं लता जी के पिता दीनानाथ मंगेशकर मराठी नाटय़ और शास्रीय संगीत के प्रखर गायक और संगीतकार थे। नैसर्गिक प्रतिभा की धनी लता मंगेशकर ने पांच साल की उम्र में ही पिता की निगरानी में संगीत के गुर सीखने शुरू कर दिए थे। लेकिन पिता के अचानक निधन के बाद उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। फिल्मों में गाने का मौका पाने के लिए उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ा। तेरह साल की उम्र में जब उन्होंने गाना शुरू किया तब फिल्मों में नूरजहां, शमशाद बेगम, सुरैया आदि गायिकाएं छाई हुई थीं, जिनकी आवाज ओज भरी और भारी थी। पर लता की आवाज बहुत महीन थी।
लिहाजा, संगीत निर्देशकों ने उन्हें गवाने लायक नहीं समझा। पर उस समय के मशहूर संगीत निर्देशक गुलाम हैदर ने लता की सुरीली-खनकती आवाज को पहचाना और फिल्मों में गाने के लिए रास्ता खोला। देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित लता मंगेशकर को पहला फिल्मफेयर अवार्ड फिल्म ‘मधुमति’ में गाने के लिए मिला। गिन्नी बुक्स में दर्ज लता की आवाज सदियों तक गूंजती रहेगी। गायन में ध्रुव तारे की तरह चमकती रहीं लता जी के निधन से संगीत जगत का एक युग ही समाप्त हो गया।
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