शीर्ष अदालत की फटकार

Last Updated 21 Jan 2022 04:21:05 AM IST

कोरोना से जान गंवाने वालों के परिजनों के मुआवजे में लापरवाही पर सर्वोच्च अदालत की सख्ती जायज ही कही जाएगी।


शीर्ष अदालत की फटकार

बार-बार निर्देश देने के बावजूद कई राज्यों ने इस मामले में शीर्ष अदालत को अनसुना किया और मुआवजे के लिए आए आवेदनों को ‘तकनीकी आधार’ पर खारिज कर दिया। समझना कठिन नहीं कि सरकारें पीड़ितों के परिवारवालों को लेकर क्या सोचती है? खासकर बिहार और केरल सरकार ने जिस तरह से मुआवजा देने में लापरवाही बरती, वह ज्यादा तकलीफदेह है।

यह जानते हुए कि कई परिवार इस जानलेवा महामारी में बर्बाद हो गए, कई बच्चों के सिर से मां-बाप का साया उठ गया; राज्य सरकारों ने हद दज्रे का असंवेदनशील रास्ता अख्तियार किया। उनका अपराध तो अक्षम्य ही कहा जाएगा। हास्यास्पद तथ्य तो यह है कि सर्वोच्च अदालत की सतत निगरानी के बावजूद कई राज्यों की कार्यशैली बचकाना रही। मसलन; केरल में कोरोना से 49 हजार मौतें हुई जबकि मुआवजे के लिए 27 हजारआवेदन ही आए। पूछने पर यह तर्क गढ़ा गया कि अभी आवेदन आ रहे हैं।

उसी तरह गुजरात ने 4 हजार आवेदन बिना स्पष्ट कारण के रद्द कर दिए। स्वाभाविक है कि विभिन्न राज्य सरकारों ने मुआवजा देने में तनिक भी संजीदगी का परिचय नहीं दिया। यह आचरण तब है जब कोरोना से तबाही जगजाहिर है। ज्ञातव्य है कि अदालत ने जून 2021 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन निकाय (एनडीएमए) को कोरोना से जान गंवाने वालों के परिजनों के लिए मुआवजे की रकम तय करने को कहा था। तब एनडीएमए ने 50 हजार रुपये राज्य आपदा राहत कोष से देने की सिफारिश की थी।

इस सिफारिश को अक्टूबर में अदालत ने स्वीकार किया था। अदालत की कई बातें इस मायने में काफी गंभीर और सोचने वाली है कि राज्य सरकारों की किसी भी बात, आंकड़े और तकरे को माननीय न्यायाधीशों ने अपर्याप्त और गलत बताया।

अदालत की यह टिप्पणी इस मायने में भी महत्त्वपूर्ण है कि मौत से ज्यादा दुखदायी और आहत करने वाली घटना दूसरी नहीं होती। फिर भी जान-बूझकर पीड़ितों को परेशान करना उन सिद्धातों और मर्यादा का अपमान है, जिनका राज्य सरकारों से अपेक्षा की जाती है। इस मामले में अदालत की सख्ती सराहनीय है और राज्य सरकारें जरूर आगे शिकायत का मौका नहीं देगी।



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