राजनीतिक दलों की जवाबदेही
चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के चुनाव की घोषणा कर दी है, लेकिन कोरोना विषाणु महामारी के तेजी से फैलाव के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि राजनीतिक दल अपनी जवाबदेही के साथ चुनाव प्रक्रिया में शामिल हों।
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यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि चुनावी रैलियां और चुनावी सभाएं कोरोना महामारी का सुपर वाहक साबित होंगी। इसलिए चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक पूरी तरह से रोड शो, रैलियां, साइकिल यात्रा और पद यात्रा पर रोक लगा दी है। चुनाव आयोग के इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। एक सर्वेक्षण में यह दावा किया गया है कि 41 प्रतिशत लोग राजनीतिक दलों की रैलियों पर प्रतिबंध का समर्थन करते हैं। इस बीच देखना बहुत दिलचस्प होगा कि राजनीतिक दल अपना चुनाव प्रचार किस तरह करते हैं।
चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को डिजिटल, वर्चुअल, मीडिया प्लेटफॉर्म और मोबाइल के माध्यम से चुनाव प्रचार का सुझाव दिया है। इसके अतिरिक्त अधिक-से-अधिक 5 व्यक्तियों का समूह घर-घर जाकर अपना प्रचार अभियान चला सकते हैं। चुनाव प्रचार के लिए सोशल मीडिया एक बड़ा जरिया बन सकता है। भारत में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वालों की संख्या कम नहीं है। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता और समर्थक अपने-अपने उम्मीदवारों का प्रचार करने के लिए फेसबुक, ट्विटर, व्हाटसऐप और ऑनलाइन मदद ले सकते हैं। चुनाव आयोग ने पहली बार उम्मीदवारों को ऑनलाइन के जरिये नामांकन की सुविधा दी है। वास्तव में आयोग के सामने बड़ी चुनौती है।
जीवन की अनिवार्य गतिविधियों को ठप नहीं किया जा सकता तो दूसरी ओर जान है तो जहान है। इसलिए चुनाव के दौरान कोरोना के संक्रमण को रोकना भी जरूरी है, लेकिन यह काम अकेले चुनाव आयोग नहीं कर सकता। राजनीतिक दलों की भी भूमिका बहुत अनिवार्य है।
उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन न करें। अगर चुनाव आयोग और राजनीतिक दल मिलकर सख्त कोरोना नियमों के तहत चुनाव कराने में सफल हो जाते हैं तो चुनाव प्रचार की एक नई परंपरा स्थापित हो सकती है। डिजिटल चुनाव प्रचार से रुपये-पैसों की बर्बादी की रोक लग सकेगी। राजनीति को भी एक नई दिशा मिलेगी। लोकतंत्र के लिए यह शुभ होगा।
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