गरीबी में बढ़ते अमीर

Last Updated 09 Dec 2021 12:19:36 AM IST

भारत ऐसा गरीब और आर्थिक असमानता वाला देश है जहां अधिक संख्या में धनवान आबाद हैं।


गरीबी में बढ़ते अमीर

ऐसा देश है जहां गरीबों की संख्या जितनी तेजी से बढ़ रही है, वहीं अमीरों की अमीरी भी उतनी ही तेजी से बढ़ रही है। मंगलवार को जारी ‘विश्व असमानता रिपोर्ट-2022’ में यह बात कही गई है। विश्व के सौ जाने-माने अर्थशास्रियों ने देशों की आर्थिक असमानता का अध्ययन करके यह रिपोर्ट तैयार की है।

इस रिपोर्ट की विशेषता यह भी है कि पहली बार इसमें लैंगिक आय असमानता के आंकड़े भी दिए गए हैं। भारत में लैंगिक असमानताएं बहुत ज्यादा होने के कारण लैंगिक आय असमानता को रिपोर्ट में शामिल किया जाना महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है। रिपोर्ट की प्रस्तावना नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्री अभिजित बनर्जी ने लिखी है। रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में आजादी से पहले के समय में आर्थिक असमानता ज्यादा थी। अंग्रेजों के राज में 1858 से 1947 के बीच असमानता ज्यादा थी। तब 18 प्रतिशत लोगों का 50 प्रतिशत आमदनी पर कब्जा था। लेकिन आजादी के पश्चात पंचवर्षीय योजनाएं शुरू होने पर यह आंकड़ा कम होकर 35-40 प्रतिशत पर आ गया।

कहना न होगा कि पंचवर्षीय योजनाओं का महत्त्व 1991 में उदारीकरण का दौर आरंभ होने के बाद घटने लगा। यहीं से अमीरों की संख्या में भी इजाफा होना शुरू हो गया। लेकिन निम्न मध्यम के साथ ही गरीबों की स्थिति में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आ पाया। वैसे 1980 के दशक से ही विश्व के तमाम देशों में आमदनी और संपत्ति की असमानता बढ़ने लगी थी। इसके बड़े कारण रहे-बढ़ता उदारीकरण और विनियमन का क्रियान्वयन। अमेरिका और रूस में तेजी से उदारीकरण और विनियमन कार्यक्रम क्रियान्वित किए गए जबकि चीन, यूरोपीय देश और भारत में इनकी रफ्तार बनिस्बत कम तेज थी।

बहरहाल, यह रिपोर्ट इस तथ्य की पुष्टि करती है कि नियोजित विकास को दरकिनार किए जाने के नुकसान ज्यादा हैं।  जरूरी है कि तमाम तबकों की आय और संपत्ति बढ़ाने के लिए विनियोजित योजनाओं के जरिए विकास की अवधारणा को न बिसराया जाए। कहने में गुरेज नहीं है कि उदारीकरण और विनियमन कमजोर तबकों को प्रतिस्पर्धा में हाशिये पर धकेल देता है, और समावेशी विकास की बात बेमानी लगने लगती है।



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