बचाव में ही बचाव
ओमीक्रॉन वेरिएंट के संक्रमितों की संख्या भारत में अभी दो अंकों में ही सही, पर उसका तेजी से बढ़ना चिंता पैदा करने वाला है।
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प्रभावित देशों से यात्रा पर पाबंदियों जैसे कदमों से, वायरस को आने से ज्यादा देर तक रोका नहीं जा सकता है। दूसरी लहर जितनी तेजी से बढ़ी थी और सबसे तबाही ढहाने वाले कुछ हफ्तों के दौरान हालात जैसे बेकाबू हो गए थे, उसकी यादें फिर डराने लगी हैं।
इस नये वेरिएंट का पता चलने के चंद हफ्ते में ही खासतौर पर यूरोप व अमरीका में जिस तेजी से यह संक्रमण फैला है, उससे तीसरी लहर की आशंकाओं को और बल मिल रहा है। वैसे भी इस नये वेरिएंट के बारे में अब तक एक ही जानकारी पक्की है-इसकी संक्रामकता यानी फैलने की रफ्तार, डेल्टा वेरिएंट से भी बहुत ज्यादा है, जिसे भारत में दूसरी लहर के कहर के लिए जिम्मेदार माना जाता है। कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में हम 2020 के शुरू में जहां थे, उससे बहुत आगे निकल आए हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि अब हमारे पास टीका है। आधी वयस्क आबादी को टीके की दोनों खुराकें मिल चुकी हैं और तीन-चौथाई से ज्यादा को कम से कम एक खुराक। हालांकि, उपलब्ध टीके इस वेरिएंट के खिलाफ किस हद तक बचाव उपलब्ध कराते हैं यह अभी स्पष्ट नहीं है और वास्तव में इससे अब तक संक्रमित होने वालों में टीके से रक्षितों की संख्या अच्छी-खासी है, फिर भी संक्रमण को गंभीर रूप लेने से रोकने में टीकों की कारगरता असंदिग्ध है। वैसे एक धारणा यह भी है, हालांकि इसकी पुष्टि में समय लगेगा कि यह वेरिएंट घातक उतना नहीं है, जितना संक्रामक है। संक्रमितों के गंभीर अवस्था में अस्पताल पहुंचने या मौत के मामले काफी कम हैं।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने तीसरी लहर के खतरों के संबंध में आगाह करते हुए, टीकाकरण के काम तो जल्दी से जल्दी पूरा करने की जो सलाह दी है, उस पर पूरी गंभीरता से अमल होना चाहिए। स्वास्थ्यकर्मियों तथा अन्य कमजोर प्रतिरोधकता वाले तबकों को बूस्टर डोज लगाने और अठारह से बारह वर्ष तक के बच्चों का टीकाकरण करने के उसके सुझाव पर भी, फौरन निर्णय होना चाहिए। जब तक प्राकृतिक प्रतिरोधकता विकसित नहीं होती, वायरस से बचाव में ही बचाव है।
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