जवाबदेह कौन
खुफिया जानकारी की गफलत नगालैंड के 14 मजदूरों की जान पर भारी पड़ गई। उग्रवादियों के फेर में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 लोगों की मौत हो गई।
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इसमें पहली घटना गलत पहचान के कारण हुई, जिसमें छह लोग प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-के (एनएससीएन-के) युंग ओंग धड़े के होने के संदेह में मारे गए। चाहे सेना हो या अर्धसैनिक बल या पुलिस; आतंकवादी या अपराधी होने के शक में पहले भी निर्दोष लोग मारे गए हैं, मगर नगालैंड के मोन जिले में हुई यह वारदात कई अहम सवाल भी पूछती है। मसलन; क्या उग्रवाद से बुरी तरह प्रभावित इलाकों में खुफिया एजेंसियों को फुल फ्रूफ या सटीक जानकारी नहीं मिल पा रही है?
क्या वाकई सुरक्षा बलों और अन्य फोर्सेस पर रिजल्ट देने का अपने महकमे से भारी दबाव था? ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले महीने नवम्बर में जिस तरह मणिपुर में घात लगाकर हुए उग्रवादी हमले में सेना के कर्नल, उनकी पत्नी, बच्चों के अलावा 4 जवानों को मौत के घाट उतारा गया; उसके बाद से सेना और पुलिस बल पर इस बात का भारी दबाव था कि वह इस घातक हमले का जवाब उसी तरह दे। यही वजह है कि सुरक्षा बलों ने ‘सूत्रों’ के हवाले से मिली आधी-अधूरी जानकारी पर इतनी बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया। फिलहाल सेना ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी और राज्य सरकार ने उच्च स्तरीय जांच कमेटी (एसआईटी) का गठन किया है। इनकी जांच रिपोटरे का इंतजार रहेगा।
सुरक्षा बलों की ऐसी गैरजवाबदारी कार्रवाई की आड़ में उग्रवाद के पसरने का खतरा है, लिहाजा सरकार को ज्यादा चौकस और पारदर्शी होना होगा। ईमानदारी से जांच कर बेगुनाहों को मारने वालों को सचा दिलाने से निश्चित तौर पर जनता का भरोसा बढ़ेगा। ईमानदारी से जांच इसलिए भी जरूरी है क्योंकि चीन इन इलाकों में साजिश रचता आया है। यहां तक कि वह यहां के उग्रवादी समूहों को भारी मात्रा में हथियार भी उपलब्ध कराता है।
सरकार को म्यांमार की सरकार से भी बात करनी चाहिए क्योंकि म्यांमार की सीमा पर एनएससीएन-के का ठिकाना है। निश्चित तौर पर उत्तर पूर्व में उग्रवादी घटनाओं में हाल के वर्षो में कमी आई है। किंतु इस तरह की एकाध घटना पिछले सभी अच्छे कामों को बेअसर कर सकती है। अगर इन इलाकों से उग्रवाद को खत्म करना है तो स्थानीय लोगों की बातों को ध्यान से सुनना और उस पर समझदारी के साथ अमल करना जरूरी है।
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