चुनावी हित में बोर्ड भंग
जनहित में उठाया गया एक कदम चुनावी हितों पर बलि चढ़ गया।
![]() चुनावी हित में बोर्ड भंग |
उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने अस्तित्व में आने के ठीक दो साल बाद चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग करने की घोषणा कर दी।
अभी तक बोर्ड के फायदे गिना रही राज्य सरकार चुनाव नजदीक आते ठिठक गई है, कहा जाए तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बोर्ड को भंग करने का ऐलान करके अपने ही पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र सिंह रावत का फैसला पलट दिया।
अब कैबिनेट इस फैसले पर मुहर लगाएगी और फिर शीत सत्र में ही चारधाम देवस्थानम बोर्ड एक्ट निरसन विधेयक विस से पारित किया जाएगा। त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्रित्व वाली भाजपा सरकार ने राज्य के गंगात्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ सहित 53 देवस्थानों के प्रबंधन के लिए बोर्ड का गठन किया था।
इससे तीर्थस्थलों का विकास होता और अधिक सुविधाएं जुटाई जातीं। बोर्ड का लगातार तीर्थस्थलों के पुरोहितों और हक हकूकधारियों द्वारा विरोध किया जा रहा था। त्रिवेंद्र को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने का कारण भी मुख्य रूप से इसी विरोध को माना गया।
इसके बावजूद तदनन्तर भाजपा सरकार ने भी तीर्थ पुरोहितों और हकूकधारियों की बात पर ध्यान नहीं दिया। जब त्रिवेंद्र के बाद रावत को सरकार की कमान मिली तो उन्होंने इस पर पुनर्विचार की बात तो कही मगर बात केवल बात ही रह गई।
फिर धामी सरकार के समय फिर से सरकार पर दबाव बना तो सीएम धामी ने ठीक चुनाव से पहले हाई पावर कमेटी और फिर उसकी रिपोर्ट पर मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाई, जिसे तीर्थ पुरोहितों ने टालने के लिए कमेटी पर कमेटी बनाने की संज्ञा दे दी।
आखिर कैबिनेट सब कमेटी की रिपोर्ट के बहाने देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग करने का ऐलान कर दिया गया। दो साल पहले जब त्रिवेंद्र राज में चारधाम बोर्ड विधेयक पेश हो रहा था तब कुछ भाजपा नेताओं ने विधेयक को विस की सलेक्ट कमेटी को भेजने को कहा था, लेकिन तत्कालीन सीएम ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
ऐन चुनाव से पहले भाजपा अपने कोर वोटर माने जाने वाले ब्राह्मण तबके को नाराज नहीं करना चाहते थे। इस घोषणा के बाद राज्य भर के तीर्थ पुरोहितों में प्रसन्नता का माहौल है, जबकि विपक्षी दलों ने इसे विस चुनाव के मद्देनजर लिया गया फैसला बताया है। इस फैसले का राज्य की राजनीति में दूरगामी असर हो सकता है।
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