निंदनीय और अशोभनीय
संसद का यह सत्र भी हंगामेदार होकर विफल होने की राह पर है। विफल इस अर्थ में कि विपक्ष निरंतर बहिष्कार करेगा और सरकार को जो भी विधेयक पारित कराने होंगे वह बिना बहस के पारित कराती जाएगी।
![]() निंदनीय और अशोभनीय |
विडंबना है कि इस सत्र का हंगामा पिछले सत्र से जुड़ा हुआ है। मानसून सत्र में राज्य सभा के कुछ सदस्यों ने सरकार के विरोध में जोरदार हंगामा बरपा किया था। उन्होंने संसदीय मर्यादाओं को तार-तार कर दिया था। मानसून सत्र का समूचा दृश्य किसी भी देखने सुनने वाले को अशोभनीय लगा था।
पिछले सत्र के हंगामे के लिए राज्य सभा ने एक नोटिस के जरिए बारह सदस्यों को समूचे शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया और समूचे विपक्ष ने निलंबित सांसदों के पक्ष में खड़े होकर अब तक राज्य सभा को चलने नहीं दिया।
पिछले तीन दिनों से उन्हीं दृश्यों की पुनरावृत्ति हो रही है जो पिछले सत्र में सामने आए थे। सरकार संसद के अवरोध के लिए विपक्ष को दोषी ठहरा रही है तो विपक्ष सरकार के सारे आरोपों को खारिज करते हुए उसे दोषी ठहरा रहा है और सांसदों के निलंबन को संसदीय नियमों के विरु द्ध बता रहा है। सरकार के अपने तर्क हैं और विपक्ष के अपने। इन तकरे का कोई अंत नहीं है। लेकिन सरकार और विपक्ष, दोनों की यह जिम्मेदारी बनती है कि संसद के दोनों सदन और इनके सत्र सुचारू रूप से चलें।
किसी भी मुद्दे पर स्वस्थ बहस हो और घर में बैठकर टीवी स्क्रीन पर देखने और सुनने वाले दशर्कों को संसदीय बहस को सुनने समझने में आसानी हो, लेकिन पिछले कुछ वर्षो से सरकार और विपक्ष के बीच जिस तरह की कटुता बढ़ी है, वह लोकतंत्र के लिए घातक है। संसद के शीतकालीन सत्र की शुरु आत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्षी दलों से शांति के साथ सवाल पूछने की अपील की थी। उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार किसी भी मुद्दे पर चर्चा कराने के लिए तैयार है।
प्रधानमंत्री की इस अपील का कोई असर नहीं हुआ। राज्य सभा के बारह सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर सरकार और विपक्ष के बीच घमासान जारी है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। अगर शीघ्र ही दोनों पक्षों ने अपने-अपने विवेक का सहारा लेकर इस अशोभनीय स्थिति से निपटने का साझा और सहयोगपूर्ण कार्यक्रम तैयार नहीं किया तो संसद ही अर्थहीन हो जाएगी और यह देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ नहीं होगा।
Tweet![]() |