बयानवीर न बिगाड़ें बात
केंद्रीय कैबिनेट बुधवार को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने वाले विधेयकों पर मुहर लगा सकती है।
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तत्पश्चात इन विधेयकों को 29 नवम्बर से शुरू हो रहे संसद के शीत सत्र में मंजूरी के लिए रखा जाएगा। लेकिन प्रधानमंत्री के कानूनों को वापस लेने की घोषणा मात्र किसानों को संतुष्ट नहीं कर पा रही। रही सही कसर भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं के बयान पूरी कर दे रहे हैं।
किसानों की इस आशंका को कि चुनावी नुकसान से बचने के लिए प्रधानमंत्री ने कानून वापस लेने की घोषणा की है और ये कानून विधानसभा चुनावों के बाद फिर लाए जा सकते हैं, राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र और भाजपा के वरिष्ठ सांसद साक्षी महाराज के बयानों ने हवा दी है। कलराज मिश्र ने सोमवार को कहा कि कानून किसानों के हित में थे। सरकार ने समझाने की लगातार कोशिश की फिर भी किसान आंदोलित थे, अड़े थे कि कानून वापस लिए जाएं। सरकार को लगा कि वापस ले लिए जाएं।
अगर इस बारे में कानून बनाने की जरूरत पड़ी तो दोबारा बना लिया जाएगा। वहीं वरिष्ठ सांसद साक्षी महाराज का कहना था कि विधेयक तो बनते बिगड़ते रहते हैं, फिर वापस आ जाएंगे, दोबारा बन जाएंगे, कोई देर नहीं लगती। इससे किसानों में संशय की स्थिति बनती दिख रही है। किसानों का कहना है कि बीजेपी के तमाम नेताओं ने उन्हें अपमानित किया है बल्कि प्रधानमंत्री ने भी ‘आंदोलनजीवी‘ कहकर न सिर्फ उनका मजाक उड़ाया बल्कि करीब सात सौ किसानों की मौत के बावजूद कभी इस पर अफसोस भी नहीं जताया।
प्रधानमंत्री की कानून वापस लेने की घोषणा से नहीं लगता कि चुनावों में बीजेपी कोई बड़ा फायदा ले पाएगी, नुकसान में कुछ कमी जरूर हो सकती है। भाजपा की हड़बड़ाहट इस बात से भी नजर आती है कि चुनावों के लिए पार्टी ने उत्तर प्रदेश को तीन भागों में बांटकर तीन कद्दावर नेताओं पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को चुनाव अभियान की कमान सौंप दी है।
शाह को पश्चिमी यूपी की कमान सौंपी गई है जहां किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर है और बीजेपी के खिलाफ बहुत नाराजगी है। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद सयुक्त किसान मोर्चा की मांगों की सूची भी लंबी होती जा रही है। इसमें एमएसपी की गारंटी, किसानों से मामले वापस लेने, बिजली दरें घटाने और प्रदूषण संबंधी नियमों से छूट शामिल हैं।
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