सामुदायिक रसोई नीति
भुखमरी की समस्या का निराकरण करने के लिए सामुदायिक रसोई नीति बनाने की मांग करने वाली अन्नु धवन और अन्य बनाम भारत संघ व अन्य की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार के प्रति बहुत कड़ा रुख रहा।
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शीर्ष अदालत का विश्वास है कि देश में भूख के कारण कोई मौत न हो, यह सुनिश्चित करना कल्याणकारी राज्य का संवैधानिक दायित्व है। केंद्र सरकार के इसी संवैधानिक दायित्व का बोध कराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर को आदेश दिया था कि वह राज्य सरकारों के साथ बातचीत करके अखिल भारतीय सामुदायिक रसोई की स्थापना के लिए एक विस्तृत योजना प्रस्तुत करे। शीर्ष अदालत ने इस बारे में केंद्र सरकार द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे पर अप्रसन्नता और नाराजगी जताते हुए सरकार को तीन सप्ताह में विस्तृत योजना बनाकर प्रस्तुत करने को कहा। वास्तव में केंद्र के हलफनामे में प्रस्तावित योजना के बारे में किसी तरह की विशेष जानकारी नहीं थी।
सामुदायिक रसोई नीति से संबंधित किसी भी योजना को तैयार करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच नियमित बैठक होनी चाहिए। सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपने-अपने उन क्षेत्रों को चिह्नित करना होगा जो भुखमरी से प्रभावित हैं। भारत में भुखमरी का एक बड़ा कारण यह भी है कि यहां अनाज के भंडारण के लिए पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज नहीं हैं।
इस वजह से बहुत सारा अनाज वितरण से पहले ही बर्बाद हो जाता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली का कुप्रबंधन भी भुखमरी की एक मुख्य वजह है। सुप्रीम कोर्ट को भुखमरी से होने वाली मौतों को रोकने के लिए इन तथ्यों पर भी गौर करना चाहिए। वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत गत वर्ष 94वें स्थान पर था। इस बार खिसक कर 101वें स्थान पर आ गया है।
यह भारत के लिए चिंताजनक है। लेकिन वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2021 की रिपोर्ट का एक दूसरा पहलू भी है, जिस पर गौर करना चाहिए। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी में हालात और खराब हुए हैं, जबकि इस दौर में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अस्सी करोड़ लोगों को प्रति माह पांच किलो मुफ्त अनाज बांटा गया। यह योजना अभी भी जारी है। तो क्या यह मान लिया जाए कि वैश्विक भुखमरी सूचकांक की कार्यपद्धति अवैज्ञानिक है, जैसा कि भारत सरकार दावा कर रही है।
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