भाई साथ-साथ

Last Updated 07 Jul 2025 02:30:14 PM IST

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने त्रिभाषा फार्मूले द्वारा मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की योजना का आरोप लगाया।


भाई साथ-साथ

 हिन्दी को अनिवार्य बनाने के फैसले के विरोध में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे मार्च निकालने की तैयारी में थे। मगर सरकार के फैसला वापस करने के बाद विजय रैली निकाली जिसमें शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ने कहा कि अब हम एक-दूसरे का साथ देने के लिए आ गए हैं। मिल कर आपको (सरकार) बाहर कर देंगे। राज ने कहा, किसी भी झगड़े या विवाद से महाराष्ट्र बड़ा है। हम बीस साल बाद साथ आ रहे हैं।

जो काम बाला साहेब नहीं कर सके, वह देवेंद्र फडनवीस ने कर दिखाया। आपसी अनबन के दो दशक लंबे अंतराल के बाद दोनों नेताओं ने मंच साझा किया। भाजपा ने इसे खोए आधार को वापस पाने की हताश कोशिश और पारिवारिक मेल-मिलाप सरीखा ठहराया।

उद्धव ने अपने संबोधन में कहा कि हम किसी को धमकाएंगे नहीं, लेकिन उनको भी बर्दाश्त नहीं करेंगे जो हमें धमकाते हैं। उन्होंने सभी मराठियों को साथ आने, मराठियों की पहचान को मिटना नहीं चाहिए जैसी बातें कीं जबकि राज ने मराठी को अपना एकमात्र एजेंडा बताया और कहा, हम महाराष्ट्र को बंटता हुआ नहीं देखना चाहते।

असल सवाल है, दोनों ठाकरे पुराने सारे मतभेद मिटा कर साथ कैसे काम करते हैं। हालांकि, दोनों चचेरे भाइयों का आनन-फानन मंच साझा करना, शुद्ध राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम माना जा रहा है। एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करने वाले ठाकरे बंधुओं को इसका प्रतिफल तो जनता ही देगी क्योंकि मात्र भाषा के मुद्दे से देशवासियों को प्रभावित कर पाना आसान नहीं है। दूरगामी राजनीति करने के लिए ठाकरे बंधुओं को भाजपा गठबंधन को चुनौती देने के लिए बड़े मुद्दे तलाशने होंगे।

मराठी मानुष के पक्षधर रहे बाल ठाकरे जिस हिन्दुत्व का बखान करते रहे थे, यह राग बिल्कुल उसके विपरीत जाता प्रतीत हो रहा है। मराठी बोलने को लेकर हाथापाई और अभद्रता के सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो पर जनता में नाराजगी है।

मुंबई में उत्तर भारतीयों ही नहीं, दक्षिण भारतीयों के वोट बैंक को कई दशकों से तवज्जो दी जा रही है। हालांकि सत्ता के लिए गठजोड़ करना आम है परंतु ठाकरे परिवार की राजनीति ढुलमुलाती नजर आ रही है। तमाम कट्टरता के बाजूद राज को पिछले चुनावों में मिली करारी मात को भी नहीं भूलना चाहिए। भाषा, वेशभूषा या रहन-सहन के आधार पर देश को बांटा जाना उचित नहीं कहा जा सकता।



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