प्रदूषण पर सुप्रीम सख्ती

Last Updated 17 Nov 2021 01:11:41 AM IST

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की भयावह स्थिति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की भौहें फिर तनीं।


प्रदूषण पर सुप्रीम सख्ती

सोमवार को शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार को जमकर डांट पिलाई थी, हालांकि केंद्र सरकार के प्रति भी अदालत का रुख गर्म ही दिखा। अदालत ने केंद्र सरकार को संबंधित राज्य सरकारों के साथ आपात बैठक कर कार्ययोजना बनाने के निर्देश दिए। दरअसल, प्रदूषण का असली गुनहगार अब तक पराली को बताया जाता था। सोमवार को अदालत को जब यह पता चला कि उद्योग, धूल और ट्रैफिक प्रदूषण के असली खलनायक हैं, तो अदालत ने दिल्ली सरकार को नसीहत दी कि वह बेवजह पराली पर हाय-तौबा न मचाए। केंद्र के अनुसार प्रदूषण में पराली का हिस्सा मात्र 10 फीसद है।

इसके उलट स्थानीय कारक धूल, निर्माण कार्य और वाहनों की वजह से दिल्ली-एनसीआर में हवा जहरीली हो जाती है। यानी अब नये सिरे से प्रदूषण को बढ़ाने वाले कारकों की पहचान करने और उसी के अनुसार समाधान तलाशने पर ध्यान केंद्रित करने की दरकार है। वैसे, तत्काल हल निकालने को लेकर अदालत ने केंद्र सरकार से हरियाणा, दिल्ली और पंजाब के सचिवों के साथ बैठक कर कार्ययोजना बनाने का निर्देश दिया।

देखना है कार्ययोजना में किस तरह के सुझाव दिए जाते हैं और उसे अमल में लाना कितना सहज और ईमानदारीपूर्वक होगा? मगर एक बात तो तय है कि प्रदूषण को अगर खत्म करना है तो केंद्र सरकार को बाकी राज्यों के साथ मिलकर संयुक्त कार्ययोजना बनानी होगी और उसपर पारदर्शी ढंग से अमल करना होगा। दिल्ली-एनसीआर को पूर्णत: बंद (लॉकडाउन) करने से बहुत कुछ हासिल नहीं होना है। अगर पराली का हिस्सा अभी के प्रदूषण में महज 10 फीसद है तो अक्टूबर और नवम्बर को छोड़कर बाकी महीने प्रदूषण गंभीर स्थिति में नहीं रहना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है।

इसलिए अदालत को पराली के मसले पर केंद्र की दलील की तफ्तीश अपने स्तर से करानी चाहिए। अगर निर्माण कार्यों पर पाबंदी लगाई जाएगी तो इसके दुष्परिणामों को भी ध्यान में रखना होगा। हां, वाहनों की अधिकाधिक संख्या जरूर चिंतन का मसला है। इसलिए सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को दुरुस्त करना निहायत जरूरी है। इसके अलावा प्रदूषण से जुड़ी शिकायतों का निपटारा भी तय समय के भीतर करने की आवश्यकता है। देखना है, कार्ययोजना की रूपरेखा क्या रहती है?



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