नारी मन का आख्यान
वरिष्ठ लेखिका मन्नू भंडारी नहीं रहीं। उनके लेखन के कई आयाम थे। उन्हें उनकी कहानी ‘यही सच है’ पर बनी ‘रजनीगंधा’ जैसी फिल्म के कारण जाना गया तो ‘रजनी’, ‘स्वामी’, ‘दर्पण’ जैसे धारावाहिकों की पटकथा के कारण भी।
![]() वरिष्ठ लेखिका मन्नू भंडारी |
उनके उपन्यास ‘महाभोज’ पर नाट्य प्रस्तुतियां आज भी खूब होती हैं। वे प्रसिद्ध साहित्यकार राजेन्द्र यादव की पत्नी थीं। हिंदी साहित्य के तमाम लेखक-लेखिकाओं के बीच उनके लेखन की अपनी विशिष्ट पहचान है।
भारतीय समाज में नारी मन की दुविधाओं, अंतद्र्वद्वों और अन्तरविरोधी का जितने प्रभावी ढंग से उन्होंने चितण्रकिया है, वैसा चितण्रअन्यत्र नहीं है। ‘रजनीगंधा’ फिल्म जब आई तो वह हिंदी फिल्मों में एक नये ढंग का कथानक था, जहां नायिका दो नायकों के बीच चयन की दुविधा से गुजर रही होती है। एक ओर उसका पुराना प्रेमी है और दूसरी ओर वर्तमान। पुराने प्रेमी से मुलाकात होती है और सारी बातें ताजा लगने लगती हैं।
कथाकार कृश्न चंदर के ‘पूरे चांद की रात’ में नायक कहता है कि मैं तुम्हें चूम लूं, तो नायिका कहती है कि कश्ती डूब जाएगी, नायक फिर कहता है कि तो फिर क्या करें और नायिका कहती है-डूब जाने दो, लेकिन मन्नू भंडारी की ‘गीत का चुंबन’ की नायिका कणिका नायक द्वारा चुंबन लिए जाने पर उसे थप्पड़ मार देती है, मगर वह उस प्रेम के पलों को विस्मृत भी नहीं कर पाती और पश्चाताप में जलती है। ‘एक कमजोर लड़की की कहानी’, ‘ऊंचाई’, ‘स्त्री सुबोधिनी’, ‘अभिनेता’, ‘एक बार और’, ‘चश्मे’ जैसी उनकी तमाम कहानियों की नायिकाएं इसी कशमकश और दुविधा से गुजरती हैं, जो एक आम भारतीय नारी के मन का आख्यान है, दर्पण है।
ऐसा नहीं है कि मन्नू भंडारी की नायिकाएं निर्णय लेना नहीं जानतीं या उनमें इसकी दृढ़ता और आत्मविश्वास नहीं है। उनकी ज्यादातर कहानियों में कई बार नायिका आखिर में एक निर्णय लेती भी है, लेकिन वह उस निर्णय के नतीजों को भी जानती है जो उनके उपन्यास ‘आपका बंटी’ में व्यक्त हो चुका है। यह मानवीयता, स्त्रीमन की यह कोमलता और कई बार भारतीय समाज की नैतिकता उसे कठोर निर्णयों से रोके रखती है। उनकी रचनाओं से गुजरना स्त्री मन के अधिक करीब आना है। नमन।
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