रफाल के बाद एस-400
सामरिक चुनौतियों को देखते हुए भारत अपनी सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अत्याधुनिक हथियार और रक्षा प्रणालियां जुटा रहा है।
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फ्रांस से उन्नत रफाल लड़ाकू विमान लिये गए हैं तो रूस से एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली ली जा रही है। अमेरिका की प्रतिबंधों की धमकी को दरकिनार करके भारत रूस से दुनिया का यह टॉप मिसाइल डिफेंस सिस्टम हासिल करने जा रहा है। अच्छी खबर है कि पांच एस-400 मिसाइल सिस्टम में से पहले सिस्टम के पार्ट्स आना शुरू हो गए हैं।
वर्ष के अंत तक पहले सिस्टम की डिलीवरी पूरी होने की उम्मीद है। अमेरिका इस सौदे से खुश नहीं है। अमेरिका ने 2017 में काट्सा नामक कानून पास किया था, जिसके तहत रूस से सैन्य हथियार खरीदने से विभिन्न देशों को हतोत्साहित करने के लिए प्रतिबंधों का प्रावधान है। यूक्रेन में रूस की कार्रवाई, 2016 के अमेरिकी चुनावों में दखलअंदाजी और सीरिया की मदद जैसी गतिविधियों के कारण अमेरिका ने रूस को उत्तर कोरिया और ईरान के साथ उन देशों की सूची में रखा है, जिन्हें अमेरिका अपना विरोधी समझता है।
2018 में भारत और रूस के बीच एस-400 प्रणाली को खरीदने का समझौता हुआ था। 55 अरब डॉलर के इस समझौते के तहत लंबी दूरी की जमीन से हवा में मार करने वालीं पांच मिसाइल रक्षा प्रणालियां खरीदी जा रही हैं। भारत ने चीन से खतरे के मद्देनजर इस मिसाइल प्रणाली को जरूरी बताया था। भारत का कहना है कि उसकी रूस और अमेरिका दोनों के साथ रणनीतिक साझेदारी है। इस आधार पर उसने अमेरिका से काट्सा कानून से राहत की अपील भी की थी। हालांकि अमेरिका के रुख से लगता है कि राहत मिलने की संभावना कम ही है।
पिछले साल इसी कानून के तहत अमेरिका ने तुर्की पर भी प्रतिबंध लगा दिए थे, जब उसने रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदा था। अमेरिका ने तुर्की को अपने एफ-35 फाइटर जेट प्रोग्राम से भी बाहर कर दिया था। भारत ने अमेरिकी धमकी की कोई परवाह नहीं की है। एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम सतह से हवा में 600 किमी तक मार कर सकता है। इसकी खूबी यह है कि यह ट्रकों पर भी तैनात किया जा सकता है और एक साथ 36 निशाने भेदने में सक्षम है। इसका रडार दुश्मन के ड्रोन, विमान और बैलिस्टिक मिसाइल को पहचान कर उसी हिसाब से अटैक करता है। इसका उपयोग पाक चीन सीमा को अभेद्य बनाने में किया जाएगा।
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