भारत की बढ़ी धमक

Last Updated 16 Nov 2021 12:03:01 AM IST

करीब दो हफ्ते तक चले ग्लास्गो जलवायु शिखर सम्मेलन का समापन सकारात्मक रहा।


भारत की बढ़ी धमक

जीवाश्म ईधन पर भारत के सुझाव को सभी 200 प्रतिभागी देशों ने मान लिया। भारत की दलील थी कि कोयले का उपयोग बंद करने के बजाय कम किया जाए। ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि भारत जैसे विकासशील देशों को नागरिकों की गरीबी भी दूर करनी है।

विकासशील देशों को यह अधिकार है कि वैश्विक उत्सर्जन बजट (मानवीय गतिविधियों से पृथ्वी पर कार्बन उत्सर्जन) में उनका उचित हिस्सा हो। उनसे यह कहना कि आप कोयले या जीवाश्म ईधन का उपयोग खत्म करने का वादा करो, इस पर सब्सिडी बंद करो, यह कैसे संभव है? इन देशों को अपने यहां विकास करना है, अपने नागरिकों की गरीबी दूर करनी है। निश्चित रूप से भारत का इस तरह फ्रंटफुट पर आना जरूरी भी था और इस फैसले से भारत की धमक भी बढ़ी है।

कोयले के उपयोग को लेकर हमेशा से भारत को निशाने पर रखा गया है। बेशक,  इस प्रस्ताव को लेकर ब्रिटेन समेत कई देशों और संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत की आलोचना भी की। इसके बावजूद पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील धरती को बचाने के लिए कदम बढ़ाना आवश्यक है। निश्चित तौर पर पूरी दुनिया जलवायू आपदा के कगार पर है। अगर हम अभी नहीं चेते तो विनाश तय है।

अच्छी बात यह है कि सम्मेलन में तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का वादा सभी देशों ने किया। ज्ञातव्य है कि अगर इस मामले में लापरवाही बरती गई तो तापमान 2.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाने का खतरा है। इससे कई द्वीप और देशों के तटीय शहर समुद्र में समा सकते हैं। पृथ्वी पहले ही 1.1 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुकी है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली जीवनशैली और उपभोग के पैटर्न से संकट उभरा है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का दुष्प्रभाव विश्व के विभिन्न देशों में देखा जाता रहा है।

2015 में उत्तराखंड में भीषण आपदा हो या चेन्नई और केरल में पिछले साल और इस समय भारी बारिश हो। जब तक हम लक्ष्यों को प्राप्त करने में कामयाब नहीं होंगे, प्रकृति का तांडव झेलते रहेंगे। स्वाभाविक रूप से आने वाले वर्षो में हर किसी को ईमानदारी से काम करना होगा। धनी देशों को भी आर्थिक रूप से गरीब देशों के प्रति दरियादिली दिखानी होगी। इसी में पृथ्वी का भला है।



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